Monday, August 3, 2009
Sunday, August 2, 2009
शुभारम्भ
आज इस ब्लॉग का निर्माण व विमोचन किया और नाम रखा " संवादघर में हुआ निशब्द "। यह नाम रखने के पीछे कोई विशेष कारण नहीं है और न ही "निशब्द" वाले सदी के महानायक बिग -बी से ही मेरा कोई व्यक्ति-गत सम्बन्ध ही है। एक विचार आता था की कुछ लोग जहाँ-तहाँ गाहे-बगाहे भाषण देकर या कुछ भी बोल कर अपने मन की बात या भड़ास निकाल लेते हैं। पर मुझ जैसा साधारण व्यक्ति अपनी बात कहने के लिए कहां जाए ? कुछ को मैं सुनाना नहीं चाहता और शेष मुझे सुनना नहीं चाहते।
ले-देकर यह समाचार पत्र और पत्रिकाएं ही बचती हैं, परन्तु आम जनता को अपनी बात कहने के लिए यह पत्र-पत्रिकाएं और समाचार पत्र वाले भी अपने प्रकाशन में कोई स्थान नहीं देते हैं। गली-मुहल्ले के किसी नुक्कड़ में होने वाली संगोष्ठिओं में भी यह मेरे जैसा आम व्यक्ति कुछ बोल नही पाता है और न चाहते हुए भी निशब्द हो कर रह जाता है । वोह यह पीड़ा कैसे झेलता होगा ..." जाके तन लगे वोह ही जाने। "
भला हो इन ब्लागस्पाट वालों का, इन्हें हम करोड़ों लोगों का आशीर्वाद व शुभकामनाएं, जिसने वेब पर यह मुफ्त की सुविधा हम जैसे लोगों को प्रदान की है, अन्यथा हम लोगों का क्या होता यह ईश्वर ही जानता है। अब हम जैसे लोग निशब्द नही रहेंगे , बस इसी कारण से यह नाम अच्छा लगा और रख लिया। अब हम भी सारे विश्व में प्रसिद्ध हो जायेंगे, ऐसा मुझे लगता है।
मैं अपने इस ब्लॉग द्वारा शब्द-वान और निशब्द, सभी प्रकार के लेखकों से निवेदन करता हूँ की वे मेरे इस ब्लॉग में अपनी कवितायें, लघु कहानियाँ , संस्मरण व सम-सामायिक घटनाओं पर विस्तृत जानकारी , चर्चा व विचारोंमुख लेख आदि निशुल्क भेजने की कृपा करें और किसी भी प्रकार के पारितोषिक की उम्मीद मत रखें ,यह मैं पहले ही बताये देता हूँ।
-विनायक शर्मा
आओ चर्चा करें (२५.८.२००९)
खामोश...... बोलना मना है
यूँ तो कई दिनों से हाथों और उंगलिओं में खुजली सी हो रही थी और दिमाग भी कुछ कुलबुला सा रहा था। मेरे एक मित्र डॉक्टर हैं , उनके पास गया तो वोह बोले "यदि कुछ लिखने को दिल करता है तो जी हल्का करने के लिए अपने ब्लॉग में ही कुछ लिख डालो । बिल्ग्रेड ने कम्पुटर बना कर और गूगल वालों ने फ्री में ब्लागस्पाट पर भड़ास निकलने की इजाजत देकर, मुल्क के सभी सामर्थवान(कम्प्यूटर का ज्ञान रखने वाले)- भड़ासियों को एक नई राह दिखाई है। अब वोह जहाँ- तहां चोंच लड़ाते हुए दिखाई नहीं देते हैं ।
उस दिन तो मैं अपने डॉक्टर मित्र से अधिक बहस न करते हुए घर लौट आया। परन्तु अभी-अभी टी.वी. पर समाचार देखा की हमारे माननीय प्रधान-मंत्री ने ( जिनको न जाने कैसे हमारे महान देश के प्रथम गृह मंत्री स्वर्गीय बल्लव भाई पटेल की याद अचानक आ गई ) सरदार पटेल के नाम से चलाये जा रहीं विभिन्न संस्थाओं और स्मारकों को करोड़ों की धन-राशिः सहायता के रूप में उपलब्ध कराई है ।
इसी बात पर पहले तो सोचा था की इक पुस्तक ही लिख डालूं । फिर इस भय से यह विचार त्याग दिया की कहीं मेरा भी राजनीतिक भविष्य अंधकारमय न हो जाए। ठीक है न .... क्या पता मेरी दयनीय आर्थिक स्तिथि को देखते हुए, तरस खाकर कल को भाजपा या कांग्रेस जैसे बड़े राजनीतिक दल में मुझे कोई अच्छा सा पद मिलने ही वाला हो और कोई दुश्मन "सरदार पटेल" पर लिखी जाने वाली मेरी उस पुस्तक को पार्टी के सामने रख दे तो ? जानते हैं कि उस स्तिथि में मेरे साथ क्या होगा ? मुझे पार्टी का सदस्य बनाये बगैर ही पार्टी से निकाल दिया जाएगा। क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि फलां नेताजी को उनकी पार्टी ने उनको सदस्यता देने से पूर्व ही पार्टी से निकाल बाहर किया ।
उस होने वाली दयनीय स्तिथी व पीड़ा से बचने के लिए ही मैंने पुस्तक लिखने का विचार त्याग दिया । मैं न तो इतना सामर्थ ही रखता हूँ कि विरोध में एक छोटी सी प्रेस-कांफ्रेंस ही बुलवा सकूँ और शिमला के सीसल होटल में ठहरना तो बहुत दूर कि बात है। अपन को तो जैन धर्मशाला मैं ही रात काटने को स्थान मिल जाए वह ही मेरे लिए ५ सितारा होटल से कहीं बढ कर होगा।
फिर जनाब मरहूम जिन्ना साहिब पर तो वोह शख्स अपनी कलम घिसे जो अपने देश कि सभी मशहूर शख्सियतों पर बहुत कुछ लिख चुका हो। और मुझे तो इतिहास से बहुत ही घबराहट होती है। हाँ , चूँ कि राजनीति में मुझे अपना भविष्य बहुत ही उज्जवल और सुंदर दिखाई देता है इस लिए में राजनीति पर सुनना, बोलना और लिखना अधिक पसंद करता हूँ ।
तो बात भारतीय जनता पार्टी और बिना सुनवाई उससे निकाले गए अपने फौजी भाई श्रीमान जसवंत सिंह जी और वर्तमान धटनाक्रम की चल रही थी। सबसे पहले तो मैं चीफ इलेक्शन कमिश्नर साहिब और कॉपी राईट वाले महकमे को इस सारे मामले में तुंरत दखल देने और तत्वरित कारवाही करने कि गुजारिश करूँगा। मैं सारे देश के सामने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से पूछना चाहता हूँ कि यह स्पस्ट किया जाए कि मरहूम सरदार पटेल किस पार्टी के नेता थे ? यदि इतिहासकार और कांग्रेस वाले सबूतों के साथ देश कि जनता को यह स्पस्ट कर देते हैं कि स्वर्गीय सरदार पटेल कांग्रेस के ही नेता थे और उनके जिन्दा रहते हुए तक तो भारतीय जनता पार्टी या पूर्व में जनसंघ का तब-तक जन्म भी नहीं हुआ था। तो फिर किस तरह भारतीय जनता पार्टी वाले स्थान-स्थान पर सरदार पटेल का नाम लेकर इस महान देश कि जनता को गुमराह कर रहे हैं। और कांग्रेस वाले मौन हैं।
कल मेरे बच्चे कह रहे थे कि जसवंत सिंह ने पार्टी में रह कर पार्टी के एक स्वर्गीय नेता के खिलाफ एक किताब छपवा दी , इसी लिए उनको पार्टी से निकाला गया है व उनकी पुस्तक को गुजरात राज्य में बैन कर दिया गया है। यह तो देव भूमि हिमाचल की सरकार ने लिहाज किया वरना यदि केंद्रीय नेतुत्व का बस चलता तो जहाँ-जहाँ भारतीय जनता पार्टी कि सरकार है उन राज्यों में भूतपूर्व फौजी जसवंत सिंह के घुसने पर भी प्रतिबन्ध लग सकता था। इस देश के आम आवाम कि बात तो दूर , भारतीय जनता पार्टी से किसी भी कारण सहानुभूति रखने वाली जमात को भी यह समझ में नही आ रहा है कि इस फौजी का कसूर क्या था ?
यह दुरुस्त है कि संघ परिवार के अधीन चलने वाले विभिन्न सगठनों में गाँधी जी के कुछ किए गए त्यागों के कारण यदा-कदा उनका नाम लिया जाता है , जैसे संघ कि शाखाओं में पढा जाने वाला " प्रातः स्मरण ।" उसमें गांधीजी को स्मरण किया गया है परन्तु ठीक इसके विपरीत संघ-परिवार द्वारा गांधीजी को विभाजन के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है। इसी प्रकार सरदार पटेल जो कि तःउमर कांग्रेस पार्टी के ही सदस्य रहे , को भारतीय जनता पार्टी १९४७ के बाद विभिन्न रियासतों और तत्कालीन राजाओं के राज्यों को भारतीय गणराज्य में शामिल करने के लिए उनके द्बारा किए गए प्रयत्नों के कारण यदा-कदा याद कर लिया करती है।
अब गुजरात में सरकार बनने के पश्चात तो लगता है कि भारतीय जनता पार्टी को मरहूम पटेल साहिब से कुछ विशेष स्नेह हो गया है कि उन पर एक पुस्तक में मात्र दो पक्तियां लिख देने से ही पार्टी के एक कद्दावर नेता की बली दे दी गई। यह कैसी विडम्बना है कि गाँधी के देश में, गांधीजी पर तो किसी भी प्रकार का कटाक्ष किया जा सकता है परन्तु सरदार पटेल पर नहीं। नेहरूजी पर तो कुछ भी लिखा या कहा जा सकता है पर सरदार पटेल पर कतई नहीं । जब की वह दोनों ही कांग्रेस के नेता थे।
लगता है कि आज भारतीय जनता पार्टी "उधार के सिन्दूर " या किराये के पति से "करवा-चौथ" का व्रत करने में अधिक विश्वाश कर रही है। आजादी के ६२ वर्षों के बाद ' दूसरों कि कब्र कैसे खोदें' इसका -प्रैक्टिकल- या अभ्यास अपना 'नव निर्मित भवन' तोड़ कर कर रहें हैं। इसको कहते हें " पथ से भटकना।"
भारतीय जनता पार्टी के (सो-कॉल्ड) थिंक-टैंक के एक बड़े से छिद्र से भाग निकले माननीय कुलकर्णी जी ने कल एक टी.वी चैनल को ठीक ही कहा था कि - "आज पार्टी कन्फ्यूजन में है। विचारधारा का ही पता नहीं। कभी Hindutva की बात की जाती है तो कभी Hindutva के H को हटा कर केवल indutva (इन्दुत्व) , यानी indianisation (भारतीयकरण) की बात करते हैं ।
भारतीय आम जन-मानस को यह तो समझ में आता है कि यदि भारतीय जनता पार्टी का कोई सदस्य १९४७ के बाद विभिन्न रियासतों और राज्यों जैसे गोवा को भारतीय गणराज्य के अधीन लाने का श्रेय सरदार पटेल को नहीं देता है , तब यह तो कहा जा सकता था कि यह पार्टी द्वारा लिए गए एक स्टैंड के विपरीत है , न कि विचारधारा के विपरीत। परन्तु यह कहना या लिखना कि- " नेहरू , पटेल और जिन्हा आदि नेता १५ अगस्त १९४७ को स्वतन्त्रता पाने कि जल्दबाजी में थे", किस प्रकार से पार्टी विरोधी, पार्टी द्वारा लिए गए एक स्टैंड के विपरीत या पार्टी कि विचारधारा के खिलाफ कथन या कदम है ? भाजपा का पटेल प्रेम तो गुजरात में उसकी सरकार बनने में सहायक होने के कारण तो समझ में आता है परन्तु आज ६२ वर्षों बाद जिन्हा के प्रति अडवानी जी व माननीय के.सुधर्शन जी का बयान और भाजपा व संघ का पूर्व स्टैंड क्या दर्शाता है ? आज जसवंत सिंह का अपनी पुस्तक में यह कहना कि...... "गांधीजी, नेहरूजी,सरदार पटेल और लोर्ड माउन्ट-बेटन सभी १५ अगस्त को आजादी पाने के लिए जल्दबाजी में थे" तो भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान शीर्ष नेताओं को क्या तकलीफ हुई कि बेचारे फौजी को एक झटके में ही साफ़ कर दिया। तकलीफ तो कांग्रेस वालों को होनी चाहिए थी की कॉपी-राइट नियमों का उल्लंघन करते हुए भारतीय जनता पार्टी व जसवंत सिंह दोनों ही सरदार पटेल के नाम का उपयोग अपने -अपने राजनैतिक उद्द्येश्यों की पूर्ति के लिए कर रहे ।
कांग्रेस वाले पूछते क्यों नहीं भाजपा वालों से कि - कांग्रेस के एक नेता और आजाद भारत के प्रथम गृह मंत्री के नाम पर आपस में लड़ने का अधिकार भाजपा को किसने दिया ? सरदार पटेल जैसे भी थे और उन्होंने गृहमंत्री के नाते जो कुछ भी किया, उसका पूरा का पूरा श्रेय कांग्रेस को ही जाता है । यदि सरदार पटेल को कोई बुरा-भला भी कहता है , तो उस व्यक्ति या संस्था के खिलाफ आवाज उठाना या उसे कोसने का अधिकार तो केवल कांग्रेस को ही है। क्या यह भाजपा द्वारा कांग्रेस के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं है ? जयवर्धने ने लंका में लिट्टे और( भारतीय) शान्ति सेना में युद्घ करवा कर स्वयं तमाशा देखा, ठीक उसी तर्ज पर कांग्रेस भाजपा के घर में पटेल-विरोधी और पटेल-पक्षीय झगडे का तमाशा देख रही है।
भारतीय जनता पार्टी वाले तो पटेल प्रेम में यह भी भूल गए कि गांधीजी कि हत्या के बाद संघ पर सर्वप्रथम प्रतिबन्ध सरदार पटेल के ही आदेशानुसार लगाया गया था। इस विषय पर भा.जा.पा. के नेताओं का यह कथन कि वह प्रतिबन्ध तो नेहरू जी के दबाव के कारण लगाया गया था एक बहुत ही बचकानी बात है। यदि सरदार पटेल की निगाह में संघ पर प्रतिबन्ध गैर-जरूरी और गैर-कानूनी था तो सरदार पटेल को मंत्रिमंडल से विरोधस्वरूप त्याग-पत्र देकर मंत्रिमंडल से बाहर आ जाना चाहिए था। क्यूँ वोह उस सरकार में मंत्री-पद पर आसीन रहे ? या तो संघ पर प्रतिबन्ध लगाने का उनका तत्कालीन आदेश शत-प्रतिशत जायज था, यह संघ और भारतीय जनता पार्टी वालों को जनता के सामने स्वीकार करना चाहिए अन्यथा यह साबित होता है कि सरदार पटेल संघ पर ग़लत प्रतिबन्ध लगाने के दोष से बच नहीं सकते। कानून की दृष्टी में मारने वाला, मारने के लिए उकसाने वाला और मारने के इस कृत में किसी भी प्रकार से सहायता करने वाला व्यक्ति, सभी समान रूप से दोषी होते हैं ।
अब यदि देश के काले इतिहास के समय यानी कि आपातकाल के समय इंदिरा गाँधी की जेलों से बाहर आने के लिए संघ के तत्कालीन सर-संघचालक द्वारा (तत्कालीन इंदिरा-सरकार की एक असंवैधानिक शक्ति के रूप उभरकर आए) संजय गाँधी एवं इंदिरा गांधी को संघ द्वारा सहायता देने हेतु प्रार्थना- पत्र लिखने कि घटना से लेकर मरहूम जिन्न्हा पर कहे गए कथनों और प्रकाशित हुई विभिन्न पुस्तकों और पार्टी से निष्कासन व अंत में भूतपूर्व सर-संघ चालक माननीय के. सुदर्शन जी द्वारा गत दिनों इंदौर में दिए गए वक्तव्य को जन-संघ या भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा पूर्व में मुस्लिम-लीग या मरहूम जिन्हा पर कहे गए कथनों से मिला कर देखेंगे तो आपका विश्वास इन राजनैतिक दलों पर पूर्ण-रूप से विश्वास उठ जाएगा।
अब बात करते है केन्द्र में सत्ता-नशीं कांग्रेस पार्टी की। क्या बात है भाई कांग्रेस वालों ? आज अचानक ही इतने वर्षों बाद आपको या आपके दल से चुन कर आए प्रधान-मंत्री श्री मनमोहन सिघ जी को कैसे और क्यूँकर इतने पुराने और भूतपूर्व गृह-मंत्री कि याद एकाएक आ गई ? यह तो एक अभूतपूर्व घटना है। मैंने तो अपने लगभग साठ वर्षों के जीवन में किसी भी कांग्रेसी प्रधानमंत्री को इतनी बड़ी धनराशी सरदार पटेल के किसी भी स्मारक या संस्थान को देने की घोषणा करते हुए सुना हो , ऐसा याद नहीं है। चलो देर आए दुरुस्त आए । परन्तु मेरी शंका अभी भी बनी हुई है की क्या यह वास्तव में कांग्रेस का कुम्भ-करणी नीद से जागना और भूल सुधार है या कमजोर प्रधानमंत्री का एक धीरे का झटका, जो बी.जे.पी. वालों को जोर से लगने वाला है ?
पता नहीं कांग्रेस सरकार के एक मुखर वकील मंत्री जी, जो की गाहे-बगाहे बल-पूर्वक भारतीय जनता पार्टी या संघ परिवार का विरोध करते-रहते थे, आज-कल निर्ब्बल क्यों हो गए हैं ? उनके जैसी बल शक्ति रखने वाला व्यक्ति चुप रहे, कुछ अटपटा सा लगता है। शायद कॉपी-राइट के कानून पड़ रहे हों और शीघ्रः ही हम सब को यह समाचार मिले की कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी पर कांग्रेस के सदस्य व मंत्री रहे सरदार पटेल के नाम और काम का कांग्रेस पार्टी की पूर्व अनुमती लिए बिना राजनैतिक लाभ के लिए गैर-कानूनी प्रयोग करने पर कॉपी-राइट नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए मुक़द्द्मा कर दिया है।
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राजस्थान एक ज्योतिषी की निगाह में (दिनाक : 2७ .०८.२००९ )
पता नहीं क्यूँ मुझे ज्योतिष पर बहुत विश्वाश है, विशेषकर भारतीय पद्धती के ज्योतिष पर । वैसे मुझे ज्योतिष का कोई विशेष ज्ञान तो नहीं है, सिवाय ९ ग्रहों और १२ राशियों के। और आजकल तो विभिन्न माध्यमों द्वारा ग्रहों के कोप से बचने के तरह-तरह के उपायों का बहुत जोर-शोर से प्रचार और प्रसार भी बहुत हो रहा है । आजकल मार्केटिंग और सेल्स मैनेजमेंट का जमाना है । इससे पूर्व की आप मुझे "टेली-शोपी " वाला समझें और सोचें की मैं "लाल-किताब " में बतलाये गए उपायों का सामान बेचने वाला हूँ , तो मैं यह स्पस्ट कर देना चाहता हूँ की मेरा ऐसा कोई धंधा नहीं है ।
मैं तो केवल इतना चाहता हूँ की राजस्थान वालो चाहे व्यक्तिगत तौर से या सभी सम्मिलित होकर, अपने राज्य की कुंडली किसी विद्वान् ज्योतिषी को अवश्य ही दिखाएँ और वह भी अति शीघ्र । क्यूंकि तीन-तीन ग्रहण लगने से जो योग बन रहा है, उसके कारण लगता है की राजस्थान प्रदेश या प्रदेश वासियों के लिए यह समय कुछ ठीक नहीं चल रहा है। I.P.L. में हुई राजस्थान की विजय तक तो सब कुछ ठीक ही था परतु गुजर भाइयों की अभी हाल में हुई हड़ताल के बाद से ही समय कुछ ख़राब सा होने लगा है । घटनाक्रम पर एक निगाह डालें तो पता चलता है कि रानी साहिबा से "विपक्ष के नेता-पद" से त्यागपत्र बिना शुभ महूरत के माँगा गया था । एक उच्च राज-योग रखने वाले व्यक्ति से अशुभ घड़ी में मांगे जाने वाला त्यागपत्र न केवल दुसरे अनेक व्यक्तियों को बाहर का रास्ता व कठिनाइयों में डाल देता है बल्कि कई मर्तबा त्यागपत्र मांगने वाले व्यक्ति कि भी ऐसी छीछालेदर करवा देता है कि अंत में उस व्यक्ति को अपना त्यापत्र देकर ही जान बचानी पड़ती है। सारा का सारा दुष्टान्त हमारे सामने है। राज नाथ जी का राज भी खतरे में लगता है । उन्हें बटुक-बैरव व बागला -मुखी माता का जाप व हवन अवश्य ही करवाना चाहिए।
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं ने पता नही किस घड़ी में राजस्थान की विजयाराजे सिंधिया से उनका विपक्ष के नेता पद से त्यागपत्र माँगा, मानों भूचाल सा आ गया हो । महारानी जी के सभी ग्रह भारतीय जनता पार्टी और राजस्थान के पीछे पड़ गए। महारानी जी तो वहीं रहीं पर अपने फौजी भाई जसवंत सिंह बाहर हो गए । फिर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का बयान आया कि- " सिंधिया इस्तीफा दें " तो अब कि बार राजस्थान के एक नहीं दो-दो विधायक आउट हो गए । जरा घटनाक्रम पर गौर तो कीजिये, ग्रहों के प्रभाव को मानने पर विवश हो जायेंगे । फिर समाचार आता है की रानी को दिल्ली तलब किया गया है I तो अब की बार रानी के ग्रहों ने गलती से अरुण जेतली के बदले अरुण शोरी से बयान दिलवा कर निरपराध पूर्व पत्रकार भाई को ही बाहर का रास्ता दिखलाने की तैयारी कर ली थी। परन्तु ग्रहों को शीघ्र ही अपनी गलती का अहसास हो गया । इसी लिए ग्रहों ने तत्काल ही न केवल शोरी का बचाव ही किया , साथ ही साथ थोड़ा सा झटका जेटली को भी दे दिया " दिल्ली राज्य क्रिकेट बोर्ड " का बवाल खड़ा कर के , वह भी दिल्ली - भाजपा के पूर्व विधायक और खिलाड़ी कीर्ति आजाद के बयान द्वारा । अब जब रानी को दिल्ली बुलाया जाता है तो पूर्व संघ चालक माननीय के. सुदर्शन जी का बयान आ जाता है । चलो इस चक्कर में अपने शोरी जी के निष्काशन का शोर तो थम गया ।
यह चक्र यहीं थम जाता तब तो ठीक था । परन्तु नियति के मन में क्या है यह वोह ही जाने। अब फिर बयान आता है की "रानी इस्तीफा दें व राजस्थान भाजपा विधायक- दल की बैठक न बुलाएं "। इस बयान पर अब किस को रगडा लगे या अब किस को अन्दर -बाहर का रास्ता दिखाया जाए ? अब की बार ग्रहों ने राजस्थान विश्व हिंदू परिषद् के पूर्व उपाध्यक्ष मोदी जी का ही नम्बर लगा दिया और दस करोड़ की काली कमाई जप्त करने का कीर्तिमान बना गए आयकर वाले ।
अब सोचने का काम तो राजस्थान वालों का है या फिर भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय व शीर्ष नेतृत्व का है। मुझे तो यह स्पष्ट लगता है की आने वाले दिनों में अभी कुछ और उठा-पाठक देखेंगे "हम लोग "। विशेष तौर से मिलते-जुलते नामों वाले नेता-गण सावधान रहें ,वह भी ग्रहों की गलती से दुविधा में फँस सकते हें जैसे जेतली के बदले शोरी फंसते-फंसते बच गए ।
अपनी टीप किसी विद्वान ज्योतिषी को ही दिखाएँ ,जो ज्योतिषी स्वयं कभी आयकर वालों के चक्कर में फँस चुका हो ,ऐसा ज्योतिषी विद्वान हो सकता है ?- मुझे शक है।
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मेरी नई कविता
दादी माँ की व्यथा
ले-देकर यह समाचार पत्र और पत्रिकाएं ही बचती हैं, परन्तु आम जनता को अपनी बात कहने के लिए यह पत्र-पत्रिकाएं और समाचार पत्र वाले भी अपने प्रकाशन में कोई स्थान नहीं देते हैं। गली-मुहल्ले के किसी नुक्कड़ में होने वाली संगोष्ठिओं में भी यह मेरे जैसा आम व्यक्ति कुछ बोल नही पाता है और न चाहते हुए भी निशब्द हो कर रह जाता है । वोह यह पीड़ा कैसे झेलता होगा ..." जाके तन लगे वोह ही जाने। "
भला हो इन ब्लागस्पाट वालों का, इन्हें हम करोड़ों लोगों का आशीर्वाद व शुभकामनाएं, जिसने वेब पर यह मुफ्त की सुविधा हम जैसे लोगों को प्रदान की है, अन्यथा हम लोगों का क्या होता यह ईश्वर ही जानता है। अब हम जैसे लोग निशब्द नही रहेंगे , बस इसी कारण से यह नाम अच्छा लगा और रख लिया। अब हम भी सारे विश्व में प्रसिद्ध हो जायेंगे, ऐसा मुझे लगता है।
मैं अपने इस ब्लॉग द्वारा शब्द-वान और निशब्द, सभी प्रकार के लेखकों से निवेदन करता हूँ की वे मेरे इस ब्लॉग में अपनी कवितायें, लघु कहानियाँ , संस्मरण व सम-सामायिक घटनाओं पर विस्तृत जानकारी , चर्चा व विचारोंमुख लेख आदि निशुल्क भेजने की कृपा करें और किसी भी प्रकार के पारितोषिक की उम्मीद मत रखें ,यह मैं पहले ही बताये देता हूँ।
-विनायक शर्मा
आओ चर्चा करें (२५.८.२००९)
खामोश...... बोलना मना है
यूँ तो कई दिनों से हाथों और उंगलिओं में खुजली सी हो रही थी और दिमाग भी कुछ कुलबुला सा रहा था। मेरे एक मित्र डॉक्टर हैं , उनके पास गया तो वोह बोले "यदि कुछ लिखने को दिल करता है तो जी हल्का करने के लिए अपने ब्लॉग में ही कुछ लिख डालो । बिल्ग्रेड ने कम्पुटर बना कर और गूगल वालों ने फ्री में ब्लागस्पाट पर भड़ास निकलने की इजाजत देकर, मुल्क के सभी सामर्थवान(कम्प्यूटर का ज्ञान रखने वाले)- भड़ासियों को एक नई राह दिखाई है। अब वोह जहाँ- तहां चोंच लड़ाते हुए दिखाई नहीं देते हैं ।
उस दिन तो मैं अपने डॉक्टर मित्र से अधिक बहस न करते हुए घर लौट आया। परन्तु अभी-अभी टी.वी. पर समाचार देखा की हमारे माननीय प्रधान-मंत्री ने ( जिनको न जाने कैसे हमारे महान देश के प्रथम गृह मंत्री स्वर्गीय बल्लव भाई पटेल की याद अचानक आ गई ) सरदार पटेल के नाम से चलाये जा रहीं विभिन्न संस्थाओं और स्मारकों को करोड़ों की धन-राशिः सहायता के रूप में उपलब्ध कराई है ।
इसी बात पर पहले तो सोचा था की इक पुस्तक ही लिख डालूं । फिर इस भय से यह विचार त्याग दिया की कहीं मेरा भी राजनीतिक भविष्य अंधकारमय न हो जाए। ठीक है न .... क्या पता मेरी दयनीय आर्थिक स्तिथि को देखते हुए, तरस खाकर कल को भाजपा या कांग्रेस जैसे बड़े राजनीतिक दल में मुझे कोई अच्छा सा पद मिलने ही वाला हो और कोई दुश्मन "सरदार पटेल" पर लिखी जाने वाली मेरी उस पुस्तक को पार्टी के सामने रख दे तो ? जानते हैं कि उस स्तिथि में मेरे साथ क्या होगा ? मुझे पार्टी का सदस्य बनाये बगैर ही पार्टी से निकाल दिया जाएगा। क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि फलां नेताजी को उनकी पार्टी ने उनको सदस्यता देने से पूर्व ही पार्टी से निकाल बाहर किया ।
उस होने वाली दयनीय स्तिथी व पीड़ा से बचने के लिए ही मैंने पुस्तक लिखने का विचार त्याग दिया । मैं न तो इतना सामर्थ ही रखता हूँ कि विरोध में एक छोटी सी प्रेस-कांफ्रेंस ही बुलवा सकूँ और शिमला के सीसल होटल में ठहरना तो बहुत दूर कि बात है। अपन को तो जैन धर्मशाला मैं ही रात काटने को स्थान मिल जाए वह ही मेरे लिए ५ सितारा होटल से कहीं बढ कर होगा।
फिर जनाब मरहूम जिन्ना साहिब पर तो वोह शख्स अपनी कलम घिसे जो अपने देश कि सभी मशहूर शख्सियतों पर बहुत कुछ लिख चुका हो। और मुझे तो इतिहास से बहुत ही घबराहट होती है। हाँ , चूँ कि राजनीति में मुझे अपना भविष्य बहुत ही उज्जवल और सुंदर दिखाई देता है इस लिए में राजनीति पर सुनना, बोलना और लिखना अधिक पसंद करता हूँ ।
तो बात भारतीय जनता पार्टी और बिना सुनवाई उससे निकाले गए अपने फौजी भाई श्रीमान जसवंत सिंह जी और वर्तमान धटनाक्रम की चल रही थी। सबसे पहले तो मैं चीफ इलेक्शन कमिश्नर साहिब और कॉपी राईट वाले महकमे को इस सारे मामले में तुंरत दखल देने और तत्वरित कारवाही करने कि गुजारिश करूँगा। मैं सारे देश के सामने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से पूछना चाहता हूँ कि यह स्पस्ट किया जाए कि मरहूम सरदार पटेल किस पार्टी के नेता थे ? यदि इतिहासकार और कांग्रेस वाले सबूतों के साथ देश कि जनता को यह स्पस्ट कर देते हैं कि स्वर्गीय सरदार पटेल कांग्रेस के ही नेता थे और उनके जिन्दा रहते हुए तक तो भारतीय जनता पार्टी या पूर्व में जनसंघ का तब-तक जन्म भी नहीं हुआ था। तो फिर किस तरह भारतीय जनता पार्टी वाले स्थान-स्थान पर सरदार पटेल का नाम लेकर इस महान देश कि जनता को गुमराह कर रहे हैं। और कांग्रेस वाले मौन हैं।
कल मेरे बच्चे कह रहे थे कि जसवंत सिंह ने पार्टी में रह कर पार्टी के एक स्वर्गीय नेता के खिलाफ एक किताब छपवा दी , इसी लिए उनको पार्टी से निकाला गया है व उनकी पुस्तक को गुजरात राज्य में बैन कर दिया गया है। यह तो देव भूमि हिमाचल की सरकार ने लिहाज किया वरना यदि केंद्रीय नेतुत्व का बस चलता तो जहाँ-जहाँ भारतीय जनता पार्टी कि सरकार है उन राज्यों में भूतपूर्व फौजी जसवंत सिंह के घुसने पर भी प्रतिबन्ध लग सकता था। इस देश के आम आवाम कि बात तो दूर , भारतीय जनता पार्टी से किसी भी कारण सहानुभूति रखने वाली जमात को भी यह समझ में नही आ रहा है कि इस फौजी का कसूर क्या था ?
यह दुरुस्त है कि संघ परिवार के अधीन चलने वाले विभिन्न सगठनों में गाँधी जी के कुछ किए गए त्यागों के कारण यदा-कदा उनका नाम लिया जाता है , जैसे संघ कि शाखाओं में पढा जाने वाला " प्रातः स्मरण ।" उसमें गांधीजी को स्मरण किया गया है परन्तु ठीक इसके विपरीत संघ-परिवार द्वारा गांधीजी को विभाजन के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है। इसी प्रकार सरदार पटेल जो कि तःउमर कांग्रेस पार्टी के ही सदस्य रहे , को भारतीय जनता पार्टी १९४७ के बाद विभिन्न रियासतों और तत्कालीन राजाओं के राज्यों को भारतीय गणराज्य में शामिल करने के लिए उनके द्बारा किए गए प्रयत्नों के कारण यदा-कदा याद कर लिया करती है।
अब गुजरात में सरकार बनने के पश्चात तो लगता है कि भारतीय जनता पार्टी को मरहूम पटेल साहिब से कुछ विशेष स्नेह हो गया है कि उन पर एक पुस्तक में मात्र दो पक्तियां लिख देने से ही पार्टी के एक कद्दावर नेता की बली दे दी गई। यह कैसी विडम्बना है कि गाँधी के देश में, गांधीजी पर तो किसी भी प्रकार का कटाक्ष किया जा सकता है परन्तु सरदार पटेल पर नहीं। नेहरूजी पर तो कुछ भी लिखा या कहा जा सकता है पर सरदार पटेल पर कतई नहीं । जब की वह दोनों ही कांग्रेस के नेता थे।
लगता है कि आज भारतीय जनता पार्टी "उधार के सिन्दूर " या किराये के पति से "करवा-चौथ" का व्रत करने में अधिक विश्वाश कर रही है। आजादी के ६२ वर्षों के बाद ' दूसरों कि कब्र कैसे खोदें' इसका -प्रैक्टिकल- या अभ्यास अपना 'नव निर्मित भवन' तोड़ कर कर रहें हैं। इसको कहते हें " पथ से भटकना।"
भारतीय जनता पार्टी के (सो-कॉल्ड) थिंक-टैंक के एक बड़े से छिद्र से भाग निकले माननीय कुलकर्णी जी ने कल एक टी.वी चैनल को ठीक ही कहा था कि - "आज पार्टी कन्फ्यूजन में है। विचारधारा का ही पता नहीं। कभी Hindutva की बात की जाती है तो कभी Hindutva के H को हटा कर केवल indutva (इन्दुत्व) , यानी indianisation (भारतीयकरण) की बात करते हैं ।
भारतीय आम जन-मानस को यह तो समझ में आता है कि यदि भारतीय जनता पार्टी का कोई सदस्य १९४७ के बाद विभिन्न रियासतों और राज्यों जैसे गोवा को भारतीय गणराज्य के अधीन लाने का श्रेय सरदार पटेल को नहीं देता है , तब यह तो कहा जा सकता था कि यह पार्टी द्वारा लिए गए एक स्टैंड के विपरीत है , न कि विचारधारा के विपरीत। परन्तु यह कहना या लिखना कि- " नेहरू , पटेल और जिन्हा आदि नेता १५ अगस्त १९४७ को स्वतन्त्रता पाने कि जल्दबाजी में थे", किस प्रकार से पार्टी विरोधी, पार्टी द्वारा लिए गए एक स्टैंड के विपरीत या पार्टी कि विचारधारा के खिलाफ कथन या कदम है ? भाजपा का पटेल प्रेम तो गुजरात में उसकी सरकार बनने में सहायक होने के कारण तो समझ में आता है परन्तु आज ६२ वर्षों बाद जिन्हा के प्रति अडवानी जी व माननीय के.सुधर्शन जी का बयान और भाजपा व संघ का पूर्व स्टैंड क्या दर्शाता है ? आज जसवंत सिंह का अपनी पुस्तक में यह कहना कि...... "गांधीजी, नेहरूजी,सरदार पटेल और लोर्ड माउन्ट-बेटन सभी १५ अगस्त को आजादी पाने के लिए जल्दबाजी में थे" तो भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान शीर्ष नेताओं को क्या तकलीफ हुई कि बेचारे फौजी को एक झटके में ही साफ़ कर दिया। तकलीफ तो कांग्रेस वालों को होनी चाहिए थी की कॉपी-राइट नियमों का उल्लंघन करते हुए भारतीय जनता पार्टी व जसवंत सिंह दोनों ही सरदार पटेल के नाम का उपयोग अपने -अपने राजनैतिक उद्द्येश्यों की पूर्ति के लिए कर रहे ।
कांग्रेस वाले पूछते क्यों नहीं भाजपा वालों से कि - कांग्रेस के एक नेता और आजाद भारत के प्रथम गृह मंत्री के नाम पर आपस में लड़ने का अधिकार भाजपा को किसने दिया ? सरदार पटेल जैसे भी थे और उन्होंने गृहमंत्री के नाते जो कुछ भी किया, उसका पूरा का पूरा श्रेय कांग्रेस को ही जाता है । यदि सरदार पटेल को कोई बुरा-भला भी कहता है , तो उस व्यक्ति या संस्था के खिलाफ आवाज उठाना या उसे कोसने का अधिकार तो केवल कांग्रेस को ही है। क्या यह भाजपा द्वारा कांग्रेस के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं है ? जयवर्धने ने लंका में लिट्टे और( भारतीय) शान्ति सेना में युद्घ करवा कर स्वयं तमाशा देखा, ठीक उसी तर्ज पर कांग्रेस भाजपा के घर में पटेल-विरोधी और पटेल-पक्षीय झगडे का तमाशा देख रही है।
भारतीय जनता पार्टी वाले तो पटेल प्रेम में यह भी भूल गए कि गांधीजी कि हत्या के बाद संघ पर सर्वप्रथम प्रतिबन्ध सरदार पटेल के ही आदेशानुसार लगाया गया था। इस विषय पर भा.जा.पा. के नेताओं का यह कथन कि वह प्रतिबन्ध तो नेहरू जी के दबाव के कारण लगाया गया था एक बहुत ही बचकानी बात है। यदि सरदार पटेल की निगाह में संघ पर प्रतिबन्ध गैर-जरूरी और गैर-कानूनी था तो सरदार पटेल को मंत्रिमंडल से विरोधस्वरूप त्याग-पत्र देकर मंत्रिमंडल से बाहर आ जाना चाहिए था। क्यूँ वोह उस सरकार में मंत्री-पद पर आसीन रहे ? या तो संघ पर प्रतिबन्ध लगाने का उनका तत्कालीन आदेश शत-प्रतिशत जायज था, यह संघ और भारतीय जनता पार्टी वालों को जनता के सामने स्वीकार करना चाहिए अन्यथा यह साबित होता है कि सरदार पटेल संघ पर ग़लत प्रतिबन्ध लगाने के दोष से बच नहीं सकते। कानून की दृष्टी में मारने वाला, मारने के लिए उकसाने वाला और मारने के इस कृत में किसी भी प्रकार से सहायता करने वाला व्यक्ति, सभी समान रूप से दोषी होते हैं ।
अब यदि देश के काले इतिहास के समय यानी कि आपातकाल के समय इंदिरा गाँधी की जेलों से बाहर आने के लिए संघ के तत्कालीन सर-संघचालक द्वारा (तत्कालीन इंदिरा-सरकार की एक असंवैधानिक शक्ति के रूप उभरकर आए) संजय गाँधी एवं इंदिरा गांधी को संघ द्वारा सहायता देने हेतु प्रार्थना- पत्र लिखने कि घटना से लेकर मरहूम जिन्न्हा पर कहे गए कथनों और प्रकाशित हुई विभिन्न पुस्तकों और पार्टी से निष्कासन व अंत में भूतपूर्व सर-संघ चालक माननीय के. सुदर्शन जी द्वारा गत दिनों इंदौर में दिए गए वक्तव्य को जन-संघ या भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा पूर्व में मुस्लिम-लीग या मरहूम जिन्हा पर कहे गए कथनों से मिला कर देखेंगे तो आपका विश्वास इन राजनैतिक दलों पर पूर्ण-रूप से विश्वास उठ जाएगा।
अब बात करते है केन्द्र में सत्ता-नशीं कांग्रेस पार्टी की। क्या बात है भाई कांग्रेस वालों ? आज अचानक ही इतने वर्षों बाद आपको या आपके दल से चुन कर आए प्रधान-मंत्री श्री मनमोहन सिघ जी को कैसे और क्यूँकर इतने पुराने और भूतपूर्व गृह-मंत्री कि याद एकाएक आ गई ? यह तो एक अभूतपूर्व घटना है। मैंने तो अपने लगभग साठ वर्षों के जीवन में किसी भी कांग्रेसी प्रधानमंत्री को इतनी बड़ी धनराशी सरदार पटेल के किसी भी स्मारक या संस्थान को देने की घोषणा करते हुए सुना हो , ऐसा याद नहीं है। चलो देर आए दुरुस्त आए । परन्तु मेरी शंका अभी भी बनी हुई है की क्या यह वास्तव में कांग्रेस का कुम्भ-करणी नीद से जागना और भूल सुधार है या कमजोर प्रधानमंत्री का एक धीरे का झटका, जो बी.जे.पी. वालों को जोर से लगने वाला है ?
पता नहीं कांग्रेस सरकार के एक मुखर वकील मंत्री जी, जो की गाहे-बगाहे बल-पूर्वक भारतीय जनता पार्टी या संघ परिवार का विरोध करते-रहते थे, आज-कल निर्ब्बल क्यों हो गए हैं ? उनके जैसी बल शक्ति रखने वाला व्यक्ति चुप रहे, कुछ अटपटा सा लगता है। शायद कॉपी-राइट के कानून पड़ रहे हों और शीघ्रः ही हम सब को यह समाचार मिले की कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी पर कांग्रेस के सदस्य व मंत्री रहे सरदार पटेल के नाम और काम का कांग्रेस पार्टी की पूर्व अनुमती लिए बिना राजनैतिक लाभ के लिए गैर-कानूनी प्रयोग करने पर कॉपी-राइट नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए मुक़द्द्मा कर दिया है।
-०-०-०-
राजस्थान एक ज्योतिषी की निगाह में (दिनाक : 2७ .०८.२००९ )
पता नहीं क्यूँ मुझे ज्योतिष पर बहुत विश्वाश है, विशेषकर भारतीय पद्धती के ज्योतिष पर । वैसे मुझे ज्योतिष का कोई विशेष ज्ञान तो नहीं है, सिवाय ९ ग्रहों और १२ राशियों के। और आजकल तो विभिन्न माध्यमों द्वारा ग्रहों के कोप से बचने के तरह-तरह के उपायों का बहुत जोर-शोर से प्रचार और प्रसार भी बहुत हो रहा है । आजकल मार्केटिंग और सेल्स मैनेजमेंट का जमाना है । इससे पूर्व की आप मुझे "टेली-शोपी " वाला समझें और सोचें की मैं "लाल-किताब " में बतलाये गए उपायों का सामान बेचने वाला हूँ , तो मैं यह स्पस्ट कर देना चाहता हूँ की मेरा ऐसा कोई धंधा नहीं है ।
मैं तो केवल इतना चाहता हूँ की राजस्थान वालो चाहे व्यक्तिगत तौर से या सभी सम्मिलित होकर, अपने राज्य की कुंडली किसी विद्वान् ज्योतिषी को अवश्य ही दिखाएँ और वह भी अति शीघ्र । क्यूंकि तीन-तीन ग्रहण लगने से जो योग बन रहा है, उसके कारण लगता है की राजस्थान प्रदेश या प्रदेश वासियों के लिए यह समय कुछ ठीक नहीं चल रहा है। I.P.L. में हुई राजस्थान की विजय तक तो सब कुछ ठीक ही था परतु गुजर भाइयों की अभी हाल में हुई हड़ताल के बाद से ही समय कुछ ख़राब सा होने लगा है । घटनाक्रम पर एक निगाह डालें तो पता चलता है कि रानी साहिबा से "विपक्ष के नेता-पद" से त्यागपत्र बिना शुभ महूरत के माँगा गया था । एक उच्च राज-योग रखने वाले व्यक्ति से अशुभ घड़ी में मांगे जाने वाला त्यागपत्र न केवल दुसरे अनेक व्यक्तियों को बाहर का रास्ता व कठिनाइयों में डाल देता है बल्कि कई मर्तबा त्यागपत्र मांगने वाले व्यक्ति कि भी ऐसी छीछालेदर करवा देता है कि अंत में उस व्यक्ति को अपना त्यापत्र देकर ही जान बचानी पड़ती है। सारा का सारा दुष्टान्त हमारे सामने है। राज नाथ जी का राज भी खतरे में लगता है । उन्हें बटुक-बैरव व बागला -मुखी माता का जाप व हवन अवश्य ही करवाना चाहिए।
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं ने पता नही किस घड़ी में राजस्थान की विजयाराजे सिंधिया से उनका विपक्ष के नेता पद से त्यागपत्र माँगा, मानों भूचाल सा आ गया हो । महारानी जी के सभी ग्रह भारतीय जनता पार्टी और राजस्थान के पीछे पड़ गए। महारानी जी तो वहीं रहीं पर अपने फौजी भाई जसवंत सिंह बाहर हो गए । फिर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का बयान आया कि- " सिंधिया इस्तीफा दें " तो अब कि बार राजस्थान के एक नहीं दो-दो विधायक आउट हो गए । जरा घटनाक्रम पर गौर तो कीजिये, ग्रहों के प्रभाव को मानने पर विवश हो जायेंगे । फिर समाचार आता है की रानी को दिल्ली तलब किया गया है I तो अब की बार रानी के ग्रहों ने गलती से अरुण जेतली के बदले अरुण शोरी से बयान दिलवा कर निरपराध पूर्व पत्रकार भाई को ही बाहर का रास्ता दिखलाने की तैयारी कर ली थी। परन्तु ग्रहों को शीघ्र ही अपनी गलती का अहसास हो गया । इसी लिए ग्रहों ने तत्काल ही न केवल शोरी का बचाव ही किया , साथ ही साथ थोड़ा सा झटका जेटली को भी दे दिया " दिल्ली राज्य क्रिकेट बोर्ड " का बवाल खड़ा कर के , वह भी दिल्ली - भाजपा के पूर्व विधायक और खिलाड़ी कीर्ति आजाद के बयान द्वारा । अब जब रानी को दिल्ली बुलाया जाता है तो पूर्व संघ चालक माननीय के. सुदर्शन जी का बयान आ जाता है । चलो इस चक्कर में अपने शोरी जी के निष्काशन का शोर तो थम गया ।
यह चक्र यहीं थम जाता तब तो ठीक था । परन्तु नियति के मन में क्या है यह वोह ही जाने। अब फिर बयान आता है की "रानी इस्तीफा दें व राजस्थान भाजपा विधायक- दल की बैठक न बुलाएं "। इस बयान पर अब किस को रगडा लगे या अब किस को अन्दर -बाहर का रास्ता दिखाया जाए ? अब की बार ग्रहों ने राजस्थान विश्व हिंदू परिषद् के पूर्व उपाध्यक्ष मोदी जी का ही नम्बर लगा दिया और दस करोड़ की काली कमाई जप्त करने का कीर्तिमान बना गए आयकर वाले ।
अब सोचने का काम तो राजस्थान वालों का है या फिर भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय व शीर्ष नेतृत्व का है। मुझे तो यह स्पष्ट लगता है की आने वाले दिनों में अभी कुछ और उठा-पाठक देखेंगे "हम लोग "। विशेष तौर से मिलते-जुलते नामों वाले नेता-गण सावधान रहें ,वह भी ग्रहों की गलती से दुविधा में फँस सकते हें जैसे जेतली के बदले शोरी फंसते-फंसते बच गए ।
अपनी टीप किसी विद्वान ज्योतिषी को ही दिखाएँ ,जो ज्योतिषी स्वयं कभी आयकर वालों के चक्कर में फँस चुका हो ,ऐसा ज्योतिषी विद्वान हो सकता है ?- मुझे शक है।
-०-०-०-०-
मेरी नई कविता
दादी माँ की व्यथा
मैंने देखे इस जीवन के , अस्सी उपर पांच बसंत ॥
राज भी देखा, ताज भी देखा,
और देखा गुलामी का अंत।
रूप बदलता, रंग बदलता, और बदलता देखा परिधान ।
अधिकार भी बदले, विधान भी बदले ,
और बदलता देखा संविधान।
पर नारी के प्रति नारी की सोच न बदली
हुआ न उसकी कुंठाओं का अंत।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
(बचपन )
बचपन में विद्यालय न भेजा, कच्ची तक सिर्फ हुई पढ़ाई ।
खेल-कूद, पढ़ लिख क्या करोगी ,
माँ-बाप ने यह शर्त लगाई।
क्या बेटी का मन , मन न था ?
क्या ये बेटी के अधिकारों का हनन न था ?
पढने खेलने को जी करता था, पर मिली न किताबें, गीटे न पतंग।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
(बालावस्था)
पाली , जीता औ छिंदा , नए कपड़े बनवाते थे,
पहन इन्हें ,सज-संवर कर, हाट- मेलों में जाते थे।
खेत-खलिहान , और चूल्हा चौका ,
सब कामों में मां ने मुझे ही झोँका ।
थक जाती थे इन सब कामों में, होता था न इनका अंत।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
(यौवनावस्था )
पाली,जीता और छिंदा , कॉलेज अब जाते हैं।
हाथ करने को मेरे पीले , अब रिश्ते ढूंढे जाते हैं ।
न पूछी किसी ने मेरी पसंद , मैं की गई चारदीवारी में बंद ।
सबने मिलकर करी सलाह, नंदू से कर दिया मेरा विवाह ।
नंदू भी था दसवीं पास, उनको थी बड़े दहेज़ की आस।
शादी हो गई, डोली उठ गई, पूरी न हुई बढे दहेज़ की अभिलाषा ।
सास-ननद के ताने, पति की मार, बदली स्वसुर की भी भाषा।
कष्ट सहे बहु-भारी, क्या सास-ननद नहीं थी नारी ?
क्या पत्नी का मन , मन न था ?
क्या ये पत्नी के अधिकारों का हनन न था ?
पूजा करती पाठ करती, और पूजती साधू औ संत।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
(बच्चों का जन्म)
अब पुत्तन और श्यामे का जन्म हुआ,
सोचा अब अत्याचारों का अंत हुआ।
खेल विडम्बना का था भारी , अब विधाता की थी बारी ।
अकाल मृत्यु से ये (नंदू) हुए भगवान को प्यारे,
बिखर गया संसार , औ टूटे अरमान सारे।
लांछन लगा सास ने ससुराल से निकाला ,
छिन गया बच्चों के भी मुहं का निवाला।
क्या बहु का मन, मन न था ?
क्या ये बहु के अधिकारों का हनन न था ?
नहीं था और कोई ठोर-ठिकाना,
बच्चों को संग ले, पड़ा मायके ही जाना।
पल्ले नहीं थी कोई पूंजी न कमाई ,
कमाई रोटी, कर-कर के सिलाई।
मां-बाप जब रहे न जिन्दा, तब भाभियों ने भी किया शर्मिंदा ।
मन बहुत उद्द्वेलित होता था, मर जाने को जी करता था।
पर सामने थी कठिन परीक्षा, पुत्तन श्यामे को दी उच्च शिक्षा।
टूट गई थी , हार चुकी थी ,सोचती कब होगा कष्टों का अंत ।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
(बच्चों की पारी)
अब थी मेरे बच्चों के पारी, वापस आ गई खुशियाँ सारी ।
खिल उठीं पुनः मेरी फुलवारी, गूंजी जब नन्हे-मुन्नों की किलकारी।
बेटे अब शहरों में हैं रहते , उनके बच्चे अंगरेजी स्कूलों में हैं पढ़ते।
मैं गाँव में रह गई तनहा , पहाड़ जैसे कटता हर एक लम्हा ।
गाँव में बैठी सपने सजाऊं , कब उड़ कर बच्चों पास जाऊँ ।
बेटे कमाते पैसे बहुत सारे , पर मुझको देते झूठे लारे।
"अगली बार जब आयेंगे , मां तुझको संग ले जायेगे।"
यह सुन मैं खुशी से डोलती , पर बहुएँ वायदा पैसों से तौलतीं ।
बढ़ी बोलती - "अब बच्चों की फीस है जानी, कभी मकान की किस्त है चुकानी ।"
छोटी कहती- "कैसे ले जाएँ , सिर्फ दो कमरों का है हमारा घर।"
"इक में हम हैं सोते, दूजे में बच्चे और कम्प्यूटर ।"
क्या सास का मन, मन न था ? क्या ये माँ के अधिकारों का हनन न था ?
इसी आस में वर्ष थे बीते , हुआ न एकाकी यातनाओं का अंत।
मैंने देखे इस जीवन के, अस्सी उपर पांच बसंत ॥
फिर जब मैं हुई बीमार, सुनकर मेरी चीख-चीत्कार।
पड़ोसियों को था तरस आया, मुझको बेटों पास शहर पंहुचाया ।
दवा - दारू ,पौष्टिक खान-पान, आ गई पुनः मृत शरीर में जान।
बहुएं थीं अपने कामों में व्यस्त , मैं रहती पोते-पोतियों में मस्त ।
एक दिन फिर ऐसा आया , मुझ पर बहुओं ने कहर बरपाया ।
सुन बहु-बेटों का वार्तालाप, मुझे हुआ बहुत ही संताप ।
बोल रही थी- "माँ यहाँ क्यों आई ? हमको होती है बड़ी कठिनाई ।
घर में सिटिंग्स व किटी पार्टी सब बंद, क्यूंकि माँ को नहीं पसंद।
टोका-टोकी बच्चों ने भी है भोगा,
गाँव भिजवाओ माँ को , उतार श्रवण कुमार का चोगा।"
सुन ये बातें, मन था मेरा खीजा , पर उनका मन तनिक भी न पसीजा ।
बेटा भूला मेरी बिमारी, क्या करता थी लाचारी ।
ममता पर हुई पत्नी भारी, पत्नी उसको थी जान से प्यारी ।
पत्नी का दिल नहीं सकता तोड़ , मुझको आया वह गाँव छोड़ ।
क्या माँ-दादी का मन, मन न था ? दादी माँ के अधिकारों का हनन न था ?
ये दुत्कार, ये त्रासदी नहीं भूलूंगी जीवन पर्यंत,
मैंने देखे हैं जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
बात यहीं रह जाती ऐसा न था, मेरे भविष्य बहुत बुरा था ।
दुर्भाग्य लाया एक दिन ऐसा संदेसा, जिसका मुझको तनिक भी न था अंदेशा ।
दिला कर मुझे Old age Home में प्रवेश, बेटे-बहुएँ सभी चले गए विदेश ।
भविष्य है बनाना ऐसी थे सोच, बूढी माँ लगती थी बोझ ।
ले रहीं सांसें, गिन इक-इक पल, मछली तडपे जैसे बिन जल ।
हे प्रभु, ये तेरी कैसी माया, कब छूटेगी यह नश्वर काया।
सोचती हूँ, कोसती हूँ, हे भाग्य विधाता, मुझे भी उपर तभी ले जाता ।
अभावों में मैंने दिन थे बिताये, कभी बिन कुच्छ पिए, बिन कुच्छ खाए ।
सारा जीवन किया संघर्ष , ताकि बच्चों का हो उत्कर्ष ।
लगा अपनी इच्छाओं पर ताला , क्या इसी दिन के लिए था बच्चों को पाला ?
क्यूँ झेल रही मैं यह व्यवहार अत्याचारी, आखिर किस की मैं हूँ जिम्मेवारी।
माँ ने रोका, ननद ने टोका, और सास ने रज- रज कर कोसा ।
बहुओं से न कोई सुख पाया, बेटों ने भी केवल मन भरमाया ।
परत दर परत राज मैं खोलूं , कथा बहुत सारी है ।
लाज है आती , क्या बतलाऊं , व्यथित की व्यथा बहुत भारी है ।
नारी- शाश्क्तिकरण का ध्वज उठाने वालों , नारी की दुश्मन ही नारी है।
नारी ही है नारी की दुश्मन नारी की राह में ,
नारी ही पुत्री को त्यागती पुत्र की चाह में ।
नारी पर हिंसा में होता नारी का भी हाथ है ,
कन्या-भ्रूण हत्या में होता नारी का भी हाथ है ।
आज नारी समाज अधिकारों को झूझता ,
नारी ही करती नारी पर क्रूरता ।
नए अधिकारों से, नए विधानों से नारी को चाहे जितना करो शशक्त ।
जब तक नारी के प्रति नारी की सोच न बदले,नहीं होगा अधिकारों का मार्ग प्रशस्त।
क्या बेटी, बहन, बहु, माँ, सास व दादी माँ का मन, मन नहीं होता ?
क्या उनके अधिकारों का हनन, हनन नहीं होता ?
पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगी आधुनिक बालाओं, जरा करो विचार।
जिस भी रूप में है नारी , उसके भी होते अधिकार-उसके भी होते अधिकार।
जन्म से लेकर इस अवस्था तक, झेली अनंत यातनाएं औरकष्ट जीवन पर्यंत।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पाँच बसंत ॥
* मैंने अपनी इस कविता के द्वारा एक दादी-माँ की व्यथा को शब्दों में व्यक्त करने यत्न किया है । मेरी इस कोशिश पर आप सभी के विचारों का स्वागत है ।
राज भी देखा, ताज भी देखा,
और देखा गुलामी का अंत।
रूप बदलता, रंग बदलता, और बदलता देखा परिधान ।
अधिकार भी बदले, विधान भी बदले ,
और बदलता देखा संविधान।
पर नारी के प्रति नारी की सोच न बदली
हुआ न उसकी कुंठाओं का अंत।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
(बचपन )
बचपन में विद्यालय न भेजा, कच्ची तक सिर्फ हुई पढ़ाई ।
खेल-कूद, पढ़ लिख क्या करोगी ,
माँ-बाप ने यह शर्त लगाई।
क्या बेटी का मन , मन न था ?
क्या ये बेटी के अधिकारों का हनन न था ?
पढने खेलने को जी करता था, पर मिली न किताबें, गीटे न पतंग।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
(बालावस्था)
पाली , जीता औ छिंदा , नए कपड़े बनवाते थे,
पहन इन्हें ,सज-संवर कर, हाट- मेलों में जाते थे।
खेत-खलिहान , और चूल्हा चौका ,
सब कामों में मां ने मुझे ही झोँका ।
थक जाती थे इन सब कामों में, होता था न इनका अंत।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
(यौवनावस्था )
पाली,जीता और छिंदा , कॉलेज अब जाते हैं।
हाथ करने को मेरे पीले , अब रिश्ते ढूंढे जाते हैं ।
न पूछी किसी ने मेरी पसंद , मैं की गई चारदीवारी में बंद ।
सबने मिलकर करी सलाह, नंदू से कर दिया मेरा विवाह ।
नंदू भी था दसवीं पास, उनको थी बड़े दहेज़ की आस।
शादी हो गई, डोली उठ गई, पूरी न हुई बढे दहेज़ की अभिलाषा ।
सास-ननद के ताने, पति की मार, बदली स्वसुर की भी भाषा।
कष्ट सहे बहु-भारी, क्या सास-ननद नहीं थी नारी ?
क्या पत्नी का मन , मन न था ?
क्या ये पत्नी के अधिकारों का हनन न था ?
पूजा करती पाठ करती, और पूजती साधू औ संत।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
(बच्चों का जन्म)
अब पुत्तन और श्यामे का जन्म हुआ,
सोचा अब अत्याचारों का अंत हुआ।
खेल विडम्बना का था भारी , अब विधाता की थी बारी ।
अकाल मृत्यु से ये (नंदू) हुए भगवान को प्यारे,
बिखर गया संसार , औ टूटे अरमान सारे।
लांछन लगा सास ने ससुराल से निकाला ,
छिन गया बच्चों के भी मुहं का निवाला।
क्या बहु का मन, मन न था ?
क्या ये बहु के अधिकारों का हनन न था ?
नहीं था और कोई ठोर-ठिकाना,
बच्चों को संग ले, पड़ा मायके ही जाना।
पल्ले नहीं थी कोई पूंजी न कमाई ,
कमाई रोटी, कर-कर के सिलाई।
मां-बाप जब रहे न जिन्दा, तब भाभियों ने भी किया शर्मिंदा ।
मन बहुत उद्द्वेलित होता था, मर जाने को जी करता था।
पर सामने थी कठिन परीक्षा, पुत्तन श्यामे को दी उच्च शिक्षा।
टूट गई थी , हार चुकी थी ,सोचती कब होगा कष्टों का अंत ।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
(बच्चों की पारी)
अब थी मेरे बच्चों के पारी, वापस आ गई खुशियाँ सारी ।
खिल उठीं पुनः मेरी फुलवारी, गूंजी जब नन्हे-मुन्नों की किलकारी।
बेटे अब शहरों में हैं रहते , उनके बच्चे अंगरेजी स्कूलों में हैं पढ़ते।
मैं गाँव में रह गई तनहा , पहाड़ जैसे कटता हर एक लम्हा ।
गाँव में बैठी सपने सजाऊं , कब उड़ कर बच्चों पास जाऊँ ।
बेटे कमाते पैसे बहुत सारे , पर मुझको देते झूठे लारे।
"अगली बार जब आयेंगे , मां तुझको संग ले जायेगे।"
यह सुन मैं खुशी से डोलती , पर बहुएँ वायदा पैसों से तौलतीं ।
बढ़ी बोलती - "अब बच्चों की फीस है जानी, कभी मकान की किस्त है चुकानी ।"
छोटी कहती- "कैसे ले जाएँ , सिर्फ दो कमरों का है हमारा घर।"
"इक में हम हैं सोते, दूजे में बच्चे और कम्प्यूटर ।"
क्या सास का मन, मन न था ? क्या ये माँ के अधिकारों का हनन न था ?
इसी आस में वर्ष थे बीते , हुआ न एकाकी यातनाओं का अंत।
मैंने देखे इस जीवन के, अस्सी उपर पांच बसंत ॥
फिर जब मैं हुई बीमार, सुनकर मेरी चीख-चीत्कार।
पड़ोसियों को था तरस आया, मुझको बेटों पास शहर पंहुचाया ।
दवा - दारू ,पौष्टिक खान-पान, आ गई पुनः मृत शरीर में जान।
बहुएं थीं अपने कामों में व्यस्त , मैं रहती पोते-पोतियों में मस्त ।
एक दिन फिर ऐसा आया , मुझ पर बहुओं ने कहर बरपाया ।
सुन बहु-बेटों का वार्तालाप, मुझे हुआ बहुत ही संताप ।
बोल रही थी- "माँ यहाँ क्यों आई ? हमको होती है बड़ी कठिनाई ।
घर में सिटिंग्स व किटी पार्टी सब बंद, क्यूंकि माँ को नहीं पसंद।
टोका-टोकी बच्चों ने भी है भोगा,
गाँव भिजवाओ माँ को , उतार श्रवण कुमार का चोगा।"
सुन ये बातें, मन था मेरा खीजा , पर उनका मन तनिक भी न पसीजा ।
बेटा भूला मेरी बिमारी, क्या करता थी लाचारी ।
ममता पर हुई पत्नी भारी, पत्नी उसको थी जान से प्यारी ।
पत्नी का दिल नहीं सकता तोड़ , मुझको आया वह गाँव छोड़ ।
क्या माँ-दादी का मन, मन न था ? दादी माँ के अधिकारों का हनन न था ?
ये दुत्कार, ये त्रासदी नहीं भूलूंगी जीवन पर्यंत,
मैंने देखे हैं जीवन के अस्सी उपर पांच बसंत ॥
बात यहीं रह जाती ऐसा न था, मेरे भविष्य बहुत बुरा था ।
दुर्भाग्य लाया एक दिन ऐसा संदेसा, जिसका मुझको तनिक भी न था अंदेशा ।
दिला कर मुझे Old age Home में प्रवेश, बेटे-बहुएँ सभी चले गए विदेश ।
भविष्य है बनाना ऐसी थे सोच, बूढी माँ लगती थी बोझ ।
ले रहीं सांसें, गिन इक-इक पल, मछली तडपे जैसे बिन जल ।
हे प्रभु, ये तेरी कैसी माया, कब छूटेगी यह नश्वर काया।
सोचती हूँ, कोसती हूँ, हे भाग्य विधाता, मुझे भी उपर तभी ले जाता ।
अभावों में मैंने दिन थे बिताये, कभी बिन कुच्छ पिए, बिन कुच्छ खाए ।
सारा जीवन किया संघर्ष , ताकि बच्चों का हो उत्कर्ष ।
लगा अपनी इच्छाओं पर ताला , क्या इसी दिन के लिए था बच्चों को पाला ?
क्यूँ झेल रही मैं यह व्यवहार अत्याचारी, आखिर किस की मैं हूँ जिम्मेवारी।
माँ ने रोका, ननद ने टोका, और सास ने रज- रज कर कोसा ।
बहुओं से न कोई सुख पाया, बेटों ने भी केवल मन भरमाया ।
परत दर परत राज मैं खोलूं , कथा बहुत सारी है ।
लाज है आती , क्या बतलाऊं , व्यथित की व्यथा बहुत भारी है ।
नारी- शाश्क्तिकरण का ध्वज उठाने वालों , नारी की दुश्मन ही नारी है।
नारी ही है नारी की दुश्मन नारी की राह में ,
नारी ही पुत्री को त्यागती पुत्र की चाह में ।
नारी पर हिंसा में होता नारी का भी हाथ है ,
कन्या-भ्रूण हत्या में होता नारी का भी हाथ है ।
आज नारी समाज अधिकारों को झूझता ,
नारी ही करती नारी पर क्रूरता ।
नए अधिकारों से, नए विधानों से नारी को चाहे जितना करो शशक्त ।
जब तक नारी के प्रति नारी की सोच न बदले,नहीं होगा अधिकारों का मार्ग प्रशस्त।
क्या बेटी, बहन, बहु, माँ, सास व दादी माँ का मन, मन नहीं होता ?
क्या उनके अधिकारों का हनन, हनन नहीं होता ?
पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगी आधुनिक बालाओं, जरा करो विचार।
जिस भी रूप में है नारी , उसके भी होते अधिकार-उसके भी होते अधिकार।
जन्म से लेकर इस अवस्था तक, झेली अनंत यातनाएं औरकष्ट जीवन पर्यंत।
मैंने देखे इस जीवन के अस्सी उपर पाँच बसंत ॥
* मैंने अपनी इस कविता के द्वारा एक दादी-माँ की व्यथा को शब्दों में व्यक्त करने यत्न किया है । मेरी इस कोशिश पर आप सभी के विचारों का स्वागत है ।
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