Saturday, April 30, 2011

बेशर्मी से अनुसरण
कहीं भी चले जाइये और किसी भी क्षेत्र में देख लीजिये ,  हम हिन्दुस्तानी लोग पीछे चलने में ( follow ) बहुत विश्वास करते हैं.....चाहे वोह राजनिति हो या खेल का मैदान .  अनुसरण करने में हमारा कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता....विशेष तौर से अपने राजनैतिक नेताओं का . मुझे याद है ..एक बार मरहूम इंदिरा गाँधी जी से किसी ने स्थापित  नियमो और परम्पराओं का  उनके द्वारा उल्लंघन करने पर  प्रश्न  पूछा था...तब उन्होंने माना था कि उन्होंने स्थापित परम्पराओ का अनेको बार उल्लंघन किया है . और अपनी माता जी का अनुसरण करते हुए ऐसा ही उदाहरण उनके पुत्र राजीव गांधी ने भी परम्पराओ और परिपाटियों  का विभिन्न अवसरों पर न केवल सरे-आम उल्लंघन कर के दिया था बल्कि स्वीकार  भी था कि उन्होंने परम्पराओं का उल्लंघन भी किया है और परिपाटियाँ भी तोड़ी हैं . नतीजा यह निकला कि हम अच्छी बातों का अनुसरण चाहे न करें परन्तु गलत कामों का अनुसरण अवश्य ही करते हैं....!
और अब जिस प्रकार से  P A C के  ग्यारह  सदस्यों ( सांसद )  ने भ्रष्टाचार और उसमें लिप्त  प्रधान-मंत्री कार्यालय को बचाने के लिए PAC  की मीटिंग में हुडदंग व नारे बाजी की ...तथा  जब PAC के अध्यक्ष श्री मुरली मनोहर जोशी ने मीटिंग बर्खास्त कर वहां से प्रस्थान किया तब गैर- कानूनी , असविधानिक और स्थापित परम्पराओं के विपरीत  अपना एक नया अध्यक्ष  चुन लिया  जबकि  PAC के अध्यक्ष का चयन लोक सभा में  विपक्षी दल के सदस्यों में से ही होता है और वह  चयन करने का अधिकार केवल और केवल लोक सभा के स्पीकर को ही  है .
PAC के अध्यक्ष द्वारा लिखी गई रिपोर्ट पर मतभेद हो सकता है.....और उसे मीटिंग में ही चर्चा के दौरान लिखित  या मौखिक रूप से प्रावधानों के अनुरूप ही पकात किया जाना चाहिए . रिपोर्ट लीक होने की बात भी मानी जा सकती वह भी बैठक में सविधानिक तरीकों से उठाई जानी चाहिए थी...जिस प्रकार से नेत्री विपक्ष ( सुषमा स्वराज ) ने शालीनता से CVC के  पद पर श्री थोमस की नियक्ति पर अपनी लिखित अस्वीकृति दी थी .
इतना ही नहीं ...लोक लेखा समिति के अध्यक्ष का चयन लोक सभा का स्पीकर करता है और वह भी लोक सभा में विपक्षी दल के सांसदों में से....... न  कि  राज्य सभा के सदस्यों में से . पर ६० वर्षो से देश के खजाने पर लूट-मार करने वाले जब नंगे होने लगे तो इस प्रकार के ओच्छे हथकंडों पर उतर आये . अन्य दलों का साथ लेने के लिए...खरीद-फ़रोख्त या फिर साम्प्रदायिकता का राग . भाजपा विरोधी या हिंदु विरोधी दलो का ध्रुवीकरण हो सके इसलिए गाहे-बगाहे  सरकारी तंत्र और बिकाऊ मीडिया द्वारा गुजरात के दंगों का कोई नया शोशा खड़ा कर देना . क्या मुस्लिम भाई अलीगढ रामपुर और मुरादाबाद के दंगे भूल गए जब उत्तर प्रदेश और केंद्र में  तब की  कांग्रेस  सरकार के इशारे पर मुस्लिम भाइयों पर  P A C ( U.P. का एक पोलिस  दल ) ने कितने अत्याचार किये थे....कितने जिन्दा जल गए थे . ८४ मैं सिखों पर कत्लेआम करने वाले आज भी शान से घूम रहे हैं. गुजरात में यदि किसी पर भी ज्यादती हुई है तो ज्यादती करने वाले पर कानूनी शिकंजा कसना ही चाहिए . परन्तु कष्ट इस लिए होता है जब इस विषय पर राजनिति की जाती है. गुजरात पर आंसू बहाने वाले....१९८४ के सिख विरोधी दंगों पर और कश्मीर के हिन्दुओ पर अपने ही देश में हो अत्याचारों पर क्यों कुछ भी बोलने से गुरेज करते हैं.....?

कांग्रेस को आज PAC  की रिपोर्ट पसंद नहीं ..कल सर्वोच्च न्यायालय का कोई फैसला पसंद नहीं होगा तब क्या वह  उस जज को ही बदल कर किसी अन्य को उस पर बैठा देंगे और अपनी पसंद का फैसला करवा लेंगे  ?  JPC  पर कष्ट इसी लिए हो रहा था.. कि यह चोर लोग चाहते थे कि इनकी कोई रिपोर्ट ही न करे..और रिपोर्ट हो भी तो इनके मन-पसंद थाने में..और फिर जाँच अधिकारी इनकी पसंद का हो ताकि मामला वहीँ ठप्प हो जाये...और यदि खुदा न खास्ता मामला कोर्ट में जाये तो वोह कोर्ट भी इनकी ही पसंद का हो......!  ताकि पहले तो तारिख पे तारिख ...और फिर निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक कम से कम पचास वर्ष तो अवश्य ही लगें . और हो सके तो मामला CBI के हवाले कर दिया जाये....फिर तो बल्ले बल्ले ....पहले मुजरिम को भगा दो फिर उसके सभी बैंक खातों पर प्रतिबन्ध हटा लो.... और  अंत में सारे केस को ही बन्द करने के लिए  closure report लगा दो.......!
और सर-फुट्टवल करते रहें हम आप सब ईमानदार , देशभक्त और कानून-व्यवस्था का पालन करने वाले साधारण नागरिक .......और फिर कुछ समय बाद भूल जायें.....जैसे नागरवाला कांड...नरसिम्हा राव की सरकार के समय चीनी कांड  जैसे .....आदि.... इत्यादि....अनंत  अन्य कांड.....!