(यह लेख अमर ज्वाला साप्ताहिक समाचार पत्र में प्रकाशित हो चुका है )
विगत कुछ समय से देश के राजनैतिक दलों में एक बहुत दिलचस्प कुश्ती प्रतियोगित चल रही है . रेफरी है इस देश की जनता जो मुहं बाए केवल देख रही है क्यूंकि नियमों का निर्धारण कुश्ती में मशगूल पहलवान ही समय समय पर अपनी मर्जी से कर रहे हैं . इसी लिए कुश्ती तो लगातार हो रही है ...परन्तु फैसला कुछ नहीं हो रहा है क्यूंकि जैसे ही एक पहलवान चित होने लगता है वह नियम बदल लेता है . रेफरी किंकर्तव्यमूढ़ होकर केवल देख ही सकता है निर्णय कुछ नहीं कर सकता . इसी को नूरा कुश्ती कहते हैं.
भ्रष्टाचार के विरुद्ध सियासी दलों के द्वारा लड़ा जाने वाला संघर्ष कुछ इसी प्रकार का ही है . जान लेवा महंगाई , बढती बेरोजगारी और अपराध , कदम कदम पर भ्रष्टाचार से सामना और विदेशी बैंकों में जमा काले धन पर सरकार की बेरुखी ..यह ऐसी ज्वलंत समस्याएं हैं जिससे इस देश का जन साधारण बहुत दुखी है और उसका आक्रोश तब और बढ जाता है जब इस पर सरकार और विपक्षी दल सुप्त प्राय से लगते हैं सिवाय चंद रिवायती बयानों के . छोटे और क्षेत्रीय दलों को तो अपनी क्षेत्रीय और घरेलु समस्याओं से ही फुरसत नहीं और हमारे वाम दल ममता द्वारा दी गई चोट पर अभी मरहम-पट्टी में ही व्यस्त है तो देश की क्या सोचेंगे . रह गए दो राष्ट्रीय दल . अपने दोनों बड़े दलों का पूरा ध्यान सत्ता बचाने और सत्ता छीनने की ओर ही लगा हुआ है . आम जनता को उसके मामूली और गैरजरूरी होने का अहसास दिलाने के लिए लोकतंत्र की एक नई परिभाषा का प्रचार किया जा रहा है कि " लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष के कर्तव्यों के विषय में आम जनता कुछ भी नहीं बोल सकती क्यूंकि यह उसका काम नहीं है..जनता केवल अपना काम करे राजनीति कि बात नहीं . " क्यूंकि यदि जनता बोलती है तो उसे हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधी बर्दाश्त नहीं कर पाते ....कारण....उनका कहना है कि .. " यह लोकतंत्र और संसदीय अधिकारों का अतिक्रमण है ....केवल राजनीतिज्ञ ही बोलने और कहने का अधिकार रखते है....शेष अपना अपना काम करें ....अन्यथा उनको अनिर्वाचित तानाशाह घोषित कर दिया जायेगा " . यह हाल है हमारे इन जन सेवकों का . इसका तो अर्थ यह हुआ कि जनता को पांच वर्षों के लिए केवल अपना सेवक चुनने का ही अधिकार है . उसके बाद वह सेवक काम कतई नहीं करेगा . वह हमारे घर में वह चाहे जितनी चोरी , लूटमार करे , जब चाहे आधी रात को सोये हुए बच्चों , बूड़ों और महिलाओं पर लाठी , आंसू गैस के गोलों की वर्षा करे ...कोई विरोध प्रतिरोध नहीं कर सकता . क्या जनप्रतिनिधि होने से उनको ऐसा करने का लाइसेंस मिल गया है ...? सत्ता में बैठा हुआ दल सत्ता बचाने के लिए , सत्ता के दंभ में ऐसी बर्बरता कर रहा है और इसके विपरीत विपक्ष में बैठे दल इसका पुरजोर विरोध भी नहीं कर रहे हैं क्यूंकि कल को उन्हें भी सत्ता में आने पर इसी चाबुक से इसी जनता को हांकना है .
कहने को तो सभी दल कहते हैं कि वे आम जनता को भ्रष्टाचार मुक्त शासन मुहैया करवाने के लिए कटिबद्ध हैं . परन्तु आचरण ठीक इसके विपरीत . विषय को गहराई से समझने के लिए हाल की ही दो-तीन घटनाएं ही बहुत हैं . कांग्रेस दिन रात पानी पी-पी कर यदुरप्पा राज , बादल राज , माया राज , मोदी राज और धूमल राज में फैले भ्रष्टाचार की बात करती है और चेतावनी देती रहती है कि जब उनकी पार्टी सत्ता में आयेगी सभी कांड उजागर किये जायेंगे साथ ही यह आश्वाशन देना भी नहीं भूलती कि उनका शासन भ्रष्टाचार मुक्त शासन होगा . परन्तु पता नहीं कांग्रेस पार्टी और सरकार कौन चला रहा है कि हाथ आया एक सुनहरा मौका बेवजह गवा दिया . योग गुरु बाबा राम देव , अन्ना हजारे व सिविल सोसाइटी और भाजपा द्वारा मिल कर फेंकी गई वाइड बाल को खामखाँ हिट करने की कोशिश में कोई भी रण नहीं ले पाई . इस वाइड बाल पर तो बिना कोई मशक्कत किये बाई का चौका तो आराम से लिया जा सकता था . अब मैं समझाता हूँ आपको ...यदि उस रात केन्द्रिय सरकार राम लीला मैदान में अनावश्यक महाभारत करने के बजाय बाबा और अनशनकारियों से कहती कि ठीक है भ्रष्टाचार और काला धन एक दिन में ठीक होने वाली बीमारी नहीं है...सो सरकार , बाबा और लोकसभा में विपक्ष की नेत्री की एक कमेटी बना देते हैं और उस कमिटी के जो भी सुझाव होंगे उसे लोकसभा में रख देंगे और आवश्यक कानून बना देंगे . या इसी प्रकार की कोई अन्य कमेटी बना कर बाबा के साथ साथ भाजपा को भी भ्रष्टाचार की इस राष्ट्र व्यापी समस्या में उलझाकर देश की आम और ख़ास जनता में यह सन्देश दिया जा सकता था कि कांग्रेस और सरकार दोनों ही भ्रष्टाचार और विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापिस लाने के लिए उतने ही गंभीर हैं जितने की देश के जन सामान्य नागरिक . परन्तु इसके ठीक विपरीत सरकार की तरफ से कपिल सिब्बल और कांग्रेस की तरफ से दिग्विजय सिंह ने जैसे ही कमान संभाली ...सारा का सारा खेल ही बिगड़ गया . इसकी सजा कांग्रेस और सरकार को मिलना अटल है . हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि देश में बेवजह आपात काल लगाने के अपराध को इस देश की जनता ने कभी क्षमा नहीं किया और इसकी सजा के रूप में न केवल विश्व-विख्यात इंदिरा गाधी को हरवा दिया था बल्कि पहली बार कांग्रेस की सरकार को भी धूल चटा दी थी . कपिल सिब्बल और दिग्विजय को यह समझना चाहिए कि महंगाई , भ्रष्टाचार , काला धन और सरकार की अकर्यमनता और अक्षमता से त्रस्त जनता इन समस्याओं से निजात पाने के लिए एक निर्णायक लड़ाई लड़ने के मूड में है और उसके लिए बाबा राम देव , अन्ना , कांग्रेस और भाजपा और सभी दल एक माध्यम मात्र हैं ...लक्ष्य नहीं . उसकी लड़ाई इस भ्रष्ट व्यवस्था से है न कि किसी व्यक्ति या विशेष दल से . माध्यम तो नित नए बनेंगे और मिटेंगे .....माध्यम के मरने मिटने से मुद्दे या लक्ष नहीं मिट जाते . ये नहीं तो वोह सही....तू नहीं तो और सही ! कांग्रेस और सरकार को जनता का यह आक्रोश भांपना चाहिए था . देश और जनता की वह ही सच्ची हितैषी है ..ऐसा सन्देश देने के लिए उसे राम देव और अन्ना की सिविल सोसाइटी के साथ उमड़े आपार जन समूह को अपने पक्ष में करने के लिए बाबा और अन्ना के साथ सहयोग करना चाहिए था . परन्तु अपने आचरण से उसने न केवल समय रहते एक सुनहरी मौका गवां दिया बल्कि मै तो कहूँगा कि अपने विरुद्ध ही कर लिया जो समय आने पर वोटों में तब्दील होकर क्या रंग दिखायेगा...यह तो आने वाला भविष्य ही बताएगा .
दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की करनी पर भी चर्चा कर लेते हैं. महंगाई , भ्रष्टाचार , घोटालों और पेट्रोलियम पदार्थों की बेतहाशा बढती कीमतों जैसे अनेक अलोकप्रिय और जनविरोधी मुद्दों के कारण बड़ते जन-आक्रोश को न तो वह अपने पक्ष में ही कर सकी और न ही सरकार विरोधी हवा ही बना सकी . अपनी अंतर्कलह के चलते वह नाम मात्र की ही प्रमुख विपक्षी पार्टी साबित हो रही है . उसने भी हाल में ही एक सुनहरा अवसर हाथ से गवा दिया . योग गुरु बाबा रामदेव और उसके समर्थकों ( जिनमें सभी दलों से सम्बन्ध रखने वाले लोग हैं ) पर अर्धरात्रि को रामलीला मैदान में हुई बर्बरता के मुद्दे पर तो भाजपा को देश भर की सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करना चाहिए था . उससे बाबा के समर्थकों के मन में भाजपा के प्रति सहानुभूति पैदा होती जो अगले चुनावो में वोटों में तब्दील हो सकते थे . और साथ ही देश की जनता को भी यह सन्देश जाता कि भाजपा भी भ्रष्टाचार और काले धन के विरोध में आम आदमी की तरह उतनी ही संजीदा है . इस पर भाजपा के लोग कह सकते हैं कि काले धन का सवाल सर्वप्रथम अडवानी जी ने ही उठाया था . भाजपा वाले यह क्यूँ भूल जाते हैं कि मात्र ब्यान देना और धरातल पर ठोस रूप से कुछ करने में बहुत अंतर होता है , और सबसे बड़ी बात यह है कि जब वाजपाई जी कि सरकार थी तब उन्होंने इस विषय पर क्यूँ नहीं कुछ ठोस कदम उठाये ? इतना ही नहीं ...क्या भाजपा ने भ्रष्टाचार और विदेशों में जमा काले धन के मुद्दे पर बाबा राम देव का खुल कर साथ दिया ? क्यूँ नहीं .....? क्या यह मुद्दा राम देव का व्यक्तिगत था ...देश हित में नहीं था ? जनलोक पाल विधेयक के प्रारूप के मुद्दे पर कांग्रेस और अन्ना के मध्य पैदा खींचतान पर क्या भाजपा को खुल कर एक कड़े जन लोकपाल कानून के पक्ष में आवाज नहीं उठानी चाहिए थी ..? भ्रष्टाचार , विदेशी बैंकों में जमा काला धन के विरोध और एक कड़े जन लोक पाल बिल के कानून के प्रारूप के पक्ष में भाजपा को आगे बढ कर आवाज उठानी चाहिए थी ...अन्ना और बाबा रामदेव का बड़े पैमाने और स्पष्ट रूपमें साथ देना चाहिए था ....न कि पार्टी के प्रवक्ता रविशंकर के नपे-तुले और गोल-मोल भाषा में सांकेतिक वक्तव्यों द्वारा समर्थन . भ्रष्टाचार , महंगाई का विरोध , विदेशी बैंकों में जमा काले धन की देश में वापसी और एक कड़े जन लोकपाल की आवश्यकता ....इन मुद्दों पर भाजपा ने खुला समर्थन न कर के कांग्रेस और सरकार के विरुद्ध हाथ आया एक सुनहरी मौका गवां दिया . लगता है दोनों दलों का इन विषयों पर शायद कोई गुप्त समझौता हो चुका है . आज जनता प्रत्येक मुद्दे पर हर पार्टी की स्पष्ट राय जानना चाहती है . पक्ष और विपक्ष में बंटा जन-साधारण भी अब सब कुछ समझने लगा है कि देश में करोड़पतियों की संख्या एक लाख तिरेप्पन हजार ऐसे ही नहीं हो गई है .
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सियासी पार्टियों की यह नूरा कुश्ती अब अधिक दिन नहीं चलने वाली . इसका पटाक्षेप तो अब होकर ही रहेगा . जनता और बहानेबाजी नहीं सुन सकती कि ऐसा है या वैसा है . प्रश्न केवल मुदों का है ...यदि मुद्दे देश और समाज हित में हैं तो आपका रुख क्या है स्पष्ट कीजिये . मंच पर कौन बैठी थी ? आन्दोलन में किन-किन नेताओ ने शिरकत की ? किसको बुलाया ..किसको क्यूँ नहीं बुलाया ? उसको बुलाया उस पर तो साम्प्रदायिकता का आरोप लग चुका है . यह सब जन साधारण को बाँटने की एक घटिया चाल है . अब इस बहकावे में आम जनता नहीं आने वाली . सोनिया और उमा भारती यदि बन्द कमरे में मुलाकात करें तो ठीक है ....साध्वी ऋतंभरा यदि मंच पर बैठ जाये तो बाबा का सारा आन्दोलन ही अपवित्र हो जाता है . साध्वी ऋतंभरा को कोसने वालों में यदि साहस है तो सोनिया गांधी का साथ छोड़ दें क्यूँ कि उन्होंने उमा भारती से बंद कमरे में न जाने क्या वार्तालाप किया है . उमा भारती पर भी तो अयोध्या का विवादित ढांचा गिराने का आरोप है . यहाँ तो यह हाल है कि न तो हम कुछ करेंगे और न ही जनता को कुछ करने देंगे .
आज आवश्यकता है दलगत राजनीति को त्याग कर देश को वर्तमान व्यवस्था से उभारने के लिए सभी मिलकर ठोस कदम उठाएं वर्ना विकट समस्याओं से घिरा आने वाला कल , आज को कभी क्षमा नहीं करेगा .
विनायक शर्मा
राष्ट्रीय संपादक ( विप्र वार्ता )
पंडोह , मंडी
विगत कुछ समय से देश के राजनैतिक दलों में एक बहुत दिलचस्प कुश्ती प्रतियोगित चल रही है . रेफरी है इस देश की जनता जो मुहं बाए केवल देख रही है क्यूंकि नियमों का निर्धारण कुश्ती में मशगूल पहलवान ही समय समय पर अपनी मर्जी से कर रहे हैं . इसी लिए कुश्ती तो लगातार हो रही है ...परन्तु फैसला कुछ नहीं हो रहा है क्यूंकि जैसे ही एक पहलवान चित होने लगता है वह नियम बदल लेता है . रेफरी किंकर्तव्यमूढ़ होकर केवल देख ही सकता है निर्णय कुछ नहीं कर सकता . इसी को नूरा कुश्ती कहते हैं.
भ्रष्टाचार के विरुद्ध सियासी दलों के द्वारा लड़ा जाने वाला संघर्ष कुछ इसी प्रकार का ही है . जान लेवा महंगाई , बढती बेरोजगारी और अपराध , कदम कदम पर भ्रष्टाचार से सामना और विदेशी बैंकों में जमा काले धन पर सरकार की बेरुखी ..यह ऐसी ज्वलंत समस्याएं हैं जिससे इस देश का जन साधारण बहुत दुखी है और उसका आक्रोश तब और बढ जाता है जब इस पर सरकार और विपक्षी दल सुप्त प्राय से लगते हैं सिवाय चंद रिवायती बयानों के . छोटे और क्षेत्रीय दलों को तो अपनी क्षेत्रीय और घरेलु समस्याओं से ही फुरसत नहीं और हमारे वाम दल ममता द्वारा दी गई चोट पर अभी मरहम-पट्टी में ही व्यस्त है तो देश की क्या सोचेंगे . रह गए दो राष्ट्रीय दल . अपने दोनों बड़े दलों का पूरा ध्यान सत्ता बचाने और सत्ता छीनने की ओर ही लगा हुआ है . आम जनता को उसके मामूली और गैरजरूरी होने का अहसास दिलाने के लिए लोकतंत्र की एक नई परिभाषा का प्रचार किया जा रहा है कि " लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष के कर्तव्यों के विषय में आम जनता कुछ भी नहीं बोल सकती क्यूंकि यह उसका काम नहीं है..जनता केवल अपना काम करे राजनीति कि बात नहीं . " क्यूंकि यदि जनता बोलती है तो उसे हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधी बर्दाश्त नहीं कर पाते ....कारण....उनका कहना है कि .. " यह लोकतंत्र और संसदीय अधिकारों का अतिक्रमण है ....केवल राजनीतिज्ञ ही बोलने और कहने का अधिकार रखते है....शेष अपना अपना काम करें ....अन्यथा उनको अनिर्वाचित तानाशाह घोषित कर दिया जायेगा " . यह हाल है हमारे इन जन सेवकों का . इसका तो अर्थ यह हुआ कि जनता को पांच वर्षों के लिए केवल अपना सेवक चुनने का ही अधिकार है . उसके बाद वह सेवक काम कतई नहीं करेगा . वह हमारे घर में वह चाहे जितनी चोरी , लूटमार करे , जब चाहे आधी रात को सोये हुए बच्चों , बूड़ों और महिलाओं पर लाठी , आंसू गैस के गोलों की वर्षा करे ...कोई विरोध प्रतिरोध नहीं कर सकता . क्या जनप्रतिनिधि होने से उनको ऐसा करने का लाइसेंस मिल गया है ...? सत्ता में बैठा हुआ दल सत्ता बचाने के लिए , सत्ता के दंभ में ऐसी बर्बरता कर रहा है और इसके विपरीत विपक्ष में बैठे दल इसका पुरजोर विरोध भी नहीं कर रहे हैं क्यूंकि कल को उन्हें भी सत्ता में आने पर इसी चाबुक से इसी जनता को हांकना है .
कहने को तो सभी दल कहते हैं कि वे आम जनता को भ्रष्टाचार मुक्त शासन मुहैया करवाने के लिए कटिबद्ध हैं . परन्तु आचरण ठीक इसके विपरीत . विषय को गहराई से समझने के लिए हाल की ही दो-तीन घटनाएं ही बहुत हैं . कांग्रेस दिन रात पानी पी-पी कर यदुरप्पा राज , बादल राज , माया राज , मोदी राज और धूमल राज में फैले भ्रष्टाचार की बात करती है और चेतावनी देती रहती है कि जब उनकी पार्टी सत्ता में आयेगी सभी कांड उजागर किये जायेंगे साथ ही यह आश्वाशन देना भी नहीं भूलती कि उनका शासन भ्रष्टाचार मुक्त शासन होगा . परन्तु पता नहीं कांग्रेस पार्टी और सरकार कौन चला रहा है कि हाथ आया एक सुनहरा मौका बेवजह गवा दिया . योग गुरु बाबा राम देव , अन्ना हजारे व सिविल सोसाइटी और भाजपा द्वारा मिल कर फेंकी गई वाइड बाल को खामखाँ हिट करने की कोशिश में कोई भी रण नहीं ले पाई . इस वाइड बाल पर तो बिना कोई मशक्कत किये बाई का चौका तो आराम से लिया जा सकता था . अब मैं समझाता हूँ आपको ...यदि उस रात केन्द्रिय सरकार राम लीला मैदान में अनावश्यक महाभारत करने के बजाय बाबा और अनशनकारियों से कहती कि ठीक है भ्रष्टाचार और काला धन एक दिन में ठीक होने वाली बीमारी नहीं है...सो सरकार , बाबा और लोकसभा में विपक्ष की नेत्री की एक कमेटी बना देते हैं और उस कमिटी के जो भी सुझाव होंगे उसे लोकसभा में रख देंगे और आवश्यक कानून बना देंगे . या इसी प्रकार की कोई अन्य कमेटी बना कर बाबा के साथ साथ भाजपा को भी भ्रष्टाचार की इस राष्ट्र व्यापी समस्या में उलझाकर देश की आम और ख़ास जनता में यह सन्देश दिया जा सकता था कि कांग्रेस और सरकार दोनों ही भ्रष्टाचार और विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापिस लाने के लिए उतने ही गंभीर हैं जितने की देश के जन सामान्य नागरिक . परन्तु इसके ठीक विपरीत सरकार की तरफ से कपिल सिब्बल और कांग्रेस की तरफ से दिग्विजय सिंह ने जैसे ही कमान संभाली ...सारा का सारा खेल ही बिगड़ गया . इसकी सजा कांग्रेस और सरकार को मिलना अटल है . हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि देश में बेवजह आपात काल लगाने के अपराध को इस देश की जनता ने कभी क्षमा नहीं किया और इसकी सजा के रूप में न केवल विश्व-विख्यात इंदिरा गाधी को हरवा दिया था बल्कि पहली बार कांग्रेस की सरकार को भी धूल चटा दी थी . कपिल सिब्बल और दिग्विजय को यह समझना चाहिए कि महंगाई , भ्रष्टाचार , काला धन और सरकार की अकर्यमनता और अक्षमता से त्रस्त जनता इन समस्याओं से निजात पाने के लिए एक निर्णायक लड़ाई लड़ने के मूड में है और उसके लिए बाबा राम देव , अन्ना , कांग्रेस और भाजपा और सभी दल एक माध्यम मात्र हैं ...लक्ष्य नहीं . उसकी लड़ाई इस भ्रष्ट व्यवस्था से है न कि किसी व्यक्ति या विशेष दल से . माध्यम तो नित नए बनेंगे और मिटेंगे .....माध्यम के मरने मिटने से मुद्दे या लक्ष नहीं मिट जाते . ये नहीं तो वोह सही....तू नहीं तो और सही ! कांग्रेस और सरकार को जनता का यह आक्रोश भांपना चाहिए था . देश और जनता की वह ही सच्ची हितैषी है ..ऐसा सन्देश देने के लिए उसे राम देव और अन्ना की सिविल सोसाइटी के साथ उमड़े आपार जन समूह को अपने पक्ष में करने के लिए बाबा और अन्ना के साथ सहयोग करना चाहिए था . परन्तु अपने आचरण से उसने न केवल समय रहते एक सुनहरी मौका गवां दिया बल्कि मै तो कहूँगा कि अपने विरुद्ध ही कर लिया जो समय आने पर वोटों में तब्दील होकर क्या रंग दिखायेगा...यह तो आने वाला भविष्य ही बताएगा .
दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की करनी पर भी चर्चा कर लेते हैं. महंगाई , भ्रष्टाचार , घोटालों और पेट्रोलियम पदार्थों की बेतहाशा बढती कीमतों जैसे अनेक अलोकप्रिय और जनविरोधी मुद्दों के कारण बड़ते जन-आक्रोश को न तो वह अपने पक्ष में ही कर सकी और न ही सरकार विरोधी हवा ही बना सकी . अपनी अंतर्कलह के चलते वह नाम मात्र की ही प्रमुख विपक्षी पार्टी साबित हो रही है . उसने भी हाल में ही एक सुनहरा अवसर हाथ से गवा दिया . योग गुरु बाबा रामदेव और उसके समर्थकों ( जिनमें सभी दलों से सम्बन्ध रखने वाले लोग हैं ) पर अर्धरात्रि को रामलीला मैदान में हुई बर्बरता के मुद्दे पर तो भाजपा को देश भर की सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करना चाहिए था . उससे बाबा के समर्थकों के मन में भाजपा के प्रति सहानुभूति पैदा होती जो अगले चुनावो में वोटों में तब्दील हो सकते थे . और साथ ही देश की जनता को भी यह सन्देश जाता कि भाजपा भी भ्रष्टाचार और काले धन के विरोध में आम आदमी की तरह उतनी ही संजीदा है . इस पर भाजपा के लोग कह सकते हैं कि काले धन का सवाल सर्वप्रथम अडवानी जी ने ही उठाया था . भाजपा वाले यह क्यूँ भूल जाते हैं कि मात्र ब्यान देना और धरातल पर ठोस रूप से कुछ करने में बहुत अंतर होता है , और सबसे बड़ी बात यह है कि जब वाजपाई जी कि सरकार थी तब उन्होंने इस विषय पर क्यूँ नहीं कुछ ठोस कदम उठाये ? इतना ही नहीं ...क्या भाजपा ने भ्रष्टाचार और विदेशों में जमा काले धन के मुद्दे पर बाबा राम देव का खुल कर साथ दिया ? क्यूँ नहीं .....? क्या यह मुद्दा राम देव का व्यक्तिगत था ...देश हित में नहीं था ? जनलोक पाल विधेयक के प्रारूप के मुद्दे पर कांग्रेस और अन्ना के मध्य पैदा खींचतान पर क्या भाजपा को खुल कर एक कड़े जन लोकपाल कानून के पक्ष में आवाज नहीं उठानी चाहिए थी ..? भ्रष्टाचार , विदेशी बैंकों में जमा काला धन के विरोध और एक कड़े जन लोक पाल बिल के कानून के प्रारूप के पक्ष में भाजपा को आगे बढ कर आवाज उठानी चाहिए थी ...अन्ना और बाबा रामदेव का बड़े पैमाने और स्पष्ट रूपमें साथ देना चाहिए था ....न कि पार्टी के प्रवक्ता रविशंकर के नपे-तुले और गोल-मोल भाषा में सांकेतिक वक्तव्यों द्वारा समर्थन . भ्रष्टाचार , महंगाई का विरोध , विदेशी बैंकों में जमा काले धन की देश में वापसी और एक कड़े जन लोकपाल की आवश्यकता ....इन मुद्दों पर भाजपा ने खुला समर्थन न कर के कांग्रेस और सरकार के विरुद्ध हाथ आया एक सुनहरी मौका गवां दिया . लगता है दोनों दलों का इन विषयों पर शायद कोई गुप्त समझौता हो चुका है . आज जनता प्रत्येक मुद्दे पर हर पार्टी की स्पष्ट राय जानना चाहती है . पक्ष और विपक्ष में बंटा जन-साधारण भी अब सब कुछ समझने लगा है कि देश में करोड़पतियों की संख्या एक लाख तिरेप्पन हजार ऐसे ही नहीं हो गई है .
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सियासी पार्टियों की यह नूरा कुश्ती अब अधिक दिन नहीं चलने वाली . इसका पटाक्षेप तो अब होकर ही रहेगा . जनता और बहानेबाजी नहीं सुन सकती कि ऐसा है या वैसा है . प्रश्न केवल मुदों का है ...यदि मुद्दे देश और समाज हित में हैं तो आपका रुख क्या है स्पष्ट कीजिये . मंच पर कौन बैठी थी ? आन्दोलन में किन-किन नेताओ ने शिरकत की ? किसको बुलाया ..किसको क्यूँ नहीं बुलाया ? उसको बुलाया उस पर तो साम्प्रदायिकता का आरोप लग चुका है . यह सब जन साधारण को बाँटने की एक घटिया चाल है . अब इस बहकावे में आम जनता नहीं आने वाली . सोनिया और उमा भारती यदि बन्द कमरे में मुलाकात करें तो ठीक है ....साध्वी ऋतंभरा यदि मंच पर बैठ जाये तो बाबा का सारा आन्दोलन ही अपवित्र हो जाता है . साध्वी ऋतंभरा को कोसने वालों में यदि साहस है तो सोनिया गांधी का साथ छोड़ दें क्यूँ कि उन्होंने उमा भारती से बंद कमरे में न जाने क्या वार्तालाप किया है . उमा भारती पर भी तो अयोध्या का विवादित ढांचा गिराने का आरोप है . यहाँ तो यह हाल है कि न तो हम कुछ करेंगे और न ही जनता को कुछ करने देंगे .
आज आवश्यकता है दलगत राजनीति को त्याग कर देश को वर्तमान व्यवस्था से उभारने के लिए सभी मिलकर ठोस कदम उठाएं वर्ना विकट समस्याओं से घिरा आने वाला कल , आज को कभी क्षमा नहीं करेगा .
विनायक शर्मा
राष्ट्रीय संपादक ( विप्र वार्ता )
पंडोह , मंडी


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