Thursday, October 20, 2011

प्रधानमंत्री पद और हाई कमान

राजनैतिक व्यंग

(यह लेख भी प्रकाशित ही चुका है )
मीडिया वालों को तो सनसनी फैलाने के अतिरिक्त और कुछ काम ही नहीं है. कभी खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के समाचार तो कभी पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में उछाल की सुर्खियाँ. अब सब के मन को मोहने वालों को और भी तो सैकड़ों काम हैं कि नहींया वे केवल मीडिया वालों को निहारते हुए उनके द्वारा निर्देशित हो नीतियों का निर्धारण करें. इस देश में समस्याएं कोई नई हैं. देश मीडिया या जनता के चिल्लाने से नहीं चलता और न ही विपक्षी दलों द्वारा आरोप लगा हंगामें खड़े कर संसद के काम-काज में व्यवधान पैदा करने से. वह दिन गए जब धरने-प्रदर्शनों और अनशनों से दिल्ली सरकार के सिहासन तक हिल जाया करते थे. अब समय बदल गया है. नैतिक और शिष्ट आचरण भूली-बिसरी बातें हो गई हैं और उनका स्थान ले लिया है अनैतिकता और भ्रष्टाचार ने. इतना ही नहीं चर्चा तो यह भी है कि अपनी सरकारों को जीवनदान और टिकाऊ बनाने के लिए झारखण्ड से शीबू-संजीवनी बूटी का आयात और अमरत्व के लिए अमर-जल जैसी औषधियों को समाजवादियों से छीन कर प्रयोग करने में भी अब कोई परेशानी नहीं होती. यह बात अलग है कि शीबू-संजीवनी स्वयं समाप्त हो गयी और अब उसकी कुछ कोंपलों से दूसरे दलों के लिए संजीवनी बूटी का काम किया जा रहा है. वहीं दूसरों को अमरत्व देने वाला अमर-जल, स्वयं रोगयुक्त हो कठिन दौर से गुजर रहा है.
यह तो दिखाई देने वाले क्षणिक उपचार है, इन से सरकारें नहीं चलतीं. देश की सरकारें चलती हैं एक अदृश्य शक्ति के आदेशों से जिसे आम भाषा मैं हाईकमान का फरमान कहा जाता है. समय-समय पर इस हाई-कमान की स्थिति भी देश, काल और परिस्थिति वश अलग-अलग दलों में भिन्न होती है. पूर्व के अति शक्तिशाली इस हाईकमान की शक्तियों में इस कदर गिरावट आई कि यह बेचारा शक्तिहीन व भय-क्रांत हो कंगारू के बच्चे की भांति सदा ही अपनी माता ( सत्ता) के पेट में ही रहना उसी पर निर्भर करना पसंद करने लगा. यदि कभी किसी कारण से उस समय के हाईकमान ने स्वतन्त्र हो स्वयं निर्णय कर सत्ता को निर्देशित करने का प्रयत्न किया तो सत्ता ने हाईकमान को दुत्कारते हुए न केवल उसका त्याग किया बल्कि स्वयं के लिए बच्चे के रूप में एक नए खिलौने ( हाईकमान ) का निर्माण कर लिया. सत्तर के दशक से पूर्व जो हाईकमान देश के प्रधान मंत्री तक को भी निर्देश देने में सक्षम होता था, सत्तर के बाद बहुत ही दयनीय स्थिति में नतमस्तक और विनम्र हो प्रधानमंत्री की जेब का खिलौना बन उसके आदेशों का पालन करने लग पड़ा. गंगा उल्टी बहने लगी. प्रधानमंत्री का स्थान ऊपर हो गया और हाई-कमान का नीचे. बीच-बीच में कुछ समय के लिए परिवर्तन भी आता रहा.
 परन्तु 2005 के पश्चात् तो परिस्थितियां एकदम विपरीत हो गईं. सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया. अब हाईकमान पुनः न केवल शक्तिशाली हो गया बल्कि किसी हद तक परदे के पीछे सत्ता के अधिकारों से भी संपन्न हो गया जिसके चलते प्रधानमंत्री का पद माधो हो गया. अब प्रधानमंत्री का पद इतना कमजोर कर दिया गया कि उस पर बैठा व्यक्ति रिमोर्ट चालित खिलौने की भांति हाई-कमान के आदेशों का पालन करने लग पड़ा. करता भी क्यूँ नहीं, प्रधानमंत्री के सभी विशेषाधिकार हाई कमान के पास सुरक्षित जो होने लग पड़े. आन्तरिक मामलों में किसी भी प्रकार की असामान्य या संकट की घड़ी में ऐसा प्रधानमंत्री सदा ही अपंग या बेबस सा परिलक्षित होता हुआ विदेश से शीघ्र उपचारोप्रांत हाई कमान के स्वास्थ्य लाभ कर लौटने की कामना ईश्वर से करता है. सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान निरीह और दुखियों की सुनने वाला वह ईश्वर देश हित में अंततः उसकी सच्ची प्रार्थना सुन ही लेता है. हाईकमान के विदेश से लौटते ही महीनों से उठ रहे २ जी घोटाले के बवंडर में चिदंबरम की मत्रीमंडल से निकासी रूक जाती है और सब कुछ सहज हो जाता है. इस घटनाक्रम में देश का मीडिया भी अनमने मन से अगला प्रधानमंत्री अडवानी होंगे या मोदी ? इस प्रश्न के उत्तर की तलाश में निकल पड़ता है.
वर्तमान परिदृश्य में हाईकमान की शक्तियां और अधिकार बहुत विस्तृत होते है. वह पार्टी या सरकार में बहुत कुछ कर सकने में सक्षम होता है. वह अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए कर्मठ और जीतने वाले पुराने उम्मीदवार को टिकट देने से बिना कोई कारण बताये मना कर सकता है. लोकतांत्रित व्यवस्था में बहुमत की अनदेखी कर अपनी इच्छा और आदेशों से वह किसी को भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री तक बनाने की शक्ति रखता है और पद च्युत करने की भी. वह चाहे तो वर्तमान में भी जीतने कि क्षमता रखने वाले विधान सभा के सदस्य को टिकट न देकर अपने किसी खानसामे या निजी सुरक्षाकर्मी को टिकट देकर, पार्टी की नाक कटवाने के साथ-साथ जमानत जब्त करवाने का अधिकार भी रखती है. हाईकमान कोई स्त्री या पुरुष न होकर एक शक्ति का नाम है. एक ऐसी शक्ति जो धारक के स्वयं की अनुपस्थिति में केवल और केवल अपने पुत्र को ही हस्तांतरित की जा सकती है.
अंत में, हाईकमान द्वारा किये गए किसी भी कार्य या आदेश को चुनौती नहीं दी जा सकती . इतना ही नहीं यदि हाईकमान के किसी भी आदेश या कार्य का परिणाम गलत निकलता है तो ऐसी विकट परिस्थिति में भी सभी एक साथ मिल कर उसे नीतिसंगत और तर्क संगत ठहराने की कोशिश करेंगे.

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