Thursday, October 20, 2011

विचित्र संयोग

( यह लेख भी प्रकाशित हो चुका है )
 भ्रष्टाचार से निजात पाने के लिए जन-लोकपाल विधेयक के लिए अन्ना हजारे का अनशन और उनके समर्थन में चला देश भर में करोड़ों लोगों के आन्दोलन के आगे मगरूर सरकार ने भी सर झुका कर ही अपनी साख बचाई परन्तु स्थाई समिति का पेंच फिर भी पासा दिया. हालाँकि कानून, न्याय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय की बहु चर्चित संसदीय समिति, जिसके पास लोकपाल विधेयक विचार के लिए भेजा गया है, के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी का यह कथन कि--आंदोलनकारी यकीन क्यों नहीं करते और स्थायी समिति को एक मौका क्यों नहीं देते ? क्या पता यह समिति कोई चमत्कार करने में सफल रहे, और लोकपाल बिल को लेकर कोई चौंकाने वाला नतीजा लाने में कामयाब हो जाए, बहुत ही मायने रखता है. स्थाई समिति के अध्यक्ष यह आश्वासन कि-- "स्थायी समिति संसदीय लोकतंत्र के लिए गर्व की बात है. कई बार कुछ मुद्दों को लेकर हमारे बीच मतभेद होते हैं. स्थायी समिति छोटी संसद की तरह है, जो दलगत राजनीति से ऊपर मुद्दों को वस्तुनिष्ठ तरीके से देखती है. इसमें विभिन्न विचारों पर चर्चा की जाती है और फिर यह लोगों के हित में सिफारिशें देती है. संसद में मुद्दे ज्यादा होते हैं और समय कम, हर पहलू पर व्यापक चर्चा नहीं हो सकती. वह काम संसदीय समिति करती है. इसमें छोटी सी छोटी बातों पर चर्चा होती है और उस हिसाब से मसविदा तैयार किया जाता है. हर किसी को इसे बनाए रखना, इसकी प्रशंसा करनी चाहिए और इस व्यवस्था को कम करके नहीं आंकना चाहिए. स्थायी समिति विचारों के आदान-प्रदान और संतुलित तरीके से विचार-विमर्श के लिए सर्वश्रेष्ठ मंच है. लिहाजा, इसकी आलोचना करने के बदले इसकी गरिमा का ख्याल रखना चाहिए." इस भावपूर्ण  बयान से जन-साधारण के मन में कुछ विश्वास सा तो जगता है कि संसद की यह  ३१ सदस्यों वाली  स्थाई समिति अपने देश और जनता से इतनी बेवफाई तो नहीं कर सकती कि देश भर में चले इतने बड़े जनांदोलन की अनदेखी करते हुए भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए एक नकारा बिल को सदन के पटल पर रख दें. देश वासियों को विश्वास है कि स्थाई समिति के अध्यक्ष अपना वायदा निभाते हुए जन-लोकपाल बिल के प्रारूप से भी अधिक कारगर कानून लायेंगे.
 अंत में यह भी अजब और विचित्र संयोग है कि अभिषेक मनु सिंघवी की अध्यक्षता वाली कानून, न्याय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय की स्थाई समिति जिसने लोक पाल या जन-लोकपाल के विभिन्न प्रारूपों और तमामत सुझावों पर गहन चर्चा कर के एक कठोर और कारगर लोक पाल बिल का प्रारूप कानून बनाने के लिए संसद के पटल पर रखना है, के पिता ने ही  कई दशक पहले लोकपाल शब्द की रचना की थी. कानून, न्याय और कार्मिक मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी के पिता, एक बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी, जाने माने विधिवेत्ता और भारतीय ज्ञानपीठ प्रवर समिति के अध्यक्ष डा० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी द्वारा 1960 के दशक  में संसद की चर्चा में भाग लेते हुए बार-बार  औमबुड्समैन नियुक्त  करने की मांग उठाने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने  सिंघवी से कहा था-- यह किस चिड़ियाघर का प्राणी है ? डा० सिंघवी, हम सब को समझाने के लिए आपको इसका स्वदेशीकरण करना होगा. डा० सिंघवी ने इस पद का हिन्दी रूपांतरण करते हुए इसे लोकपाल  नाम दिया और इसके सहयोगी का  लोकायुक्त नाम रखा था. डा० एम्.एल.सिंघवी ने 1963 से 1967 तक लोकपाल विधेयक के लिए अभियान चलाया लेकिन चूंकि वह निर्दलीय सांसद थे, इसलिए उनके प्रयास कोई रंग न ला सके. पुत्र होने के नाते कांग्रेसी सांसद अभिषेक मनु सिंघवी के लिए आज यह बहुत ही हर्ष का विषय है कि 1963-1967 तक जिस विधेयक के लिए उनके स्वर्गीय पिता प्रयासरत रहे, आज भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बनाये गए लोकपाल  विधेयक का बहुचर्चित प्रारूप उन्हीं की अध्यक्षता वाली संसद की स्थाई समिति के पास विचारणीय है. डा० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी लोकसभा ( 1962 - 67 ) और राज्यसभा ( 1998 - 04 ) के सदस्य रहे. साहित्य और मानवाधिकार के क्षेत्र में भी विशेष उपलब्धियां हासिल करने वाले डा० एलएम् सिंघवी ने  ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त के रूप में भी काम किया. अनेकों बार सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता-संघ के अध्यक्ष रहे डा० सिंघवी को विधि और सार्वजनिक विषयों में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1998 में  पद्म भूषण  से भी सम्मानित किया गया.
इन सब परिस्थितियों को देखते हुए देश को अविश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखता कि अभिषेक मनु  सिंघवी की अध्यक्षता वाली संसद की स्थाई समिति कुछ चमत्कार करते हुए चौंकाने वाले नतीजे लाने में अवश्य ही कामयाब होंगे !
                              
                                                                                            -०-०-०-०-

विनायक शर्मा
राष्ट्रीय संपादक  विप्र वार्ता
पंडोह , मंडी

No comments:

Post a Comment