Thursday, October 20, 2011

हिमाचल में सियासत की गर्मी

( यह  लेख साप्ताहिक " अमर ज्वाला " ६ जून २०११  (हिमाचल ) से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र में प्रकाशित हो चुका है) 

                     ग्रीष्म- काल पूरे देश में अपना प्रकोप दिखा रहा है . हिमाचल प्रदेश भी ग्रीष्म -काल की गर्मी से अछूता नहीं है . फिर ऊपर से जान लेवा महंगाई भी इस मौसम की तपिश को और बढ़ा रही है . इस जान लेवा महंगाई  से क्या  मजदूर , किसान , कामगार और आम आदमी सभी त्रस्त है , झटके पे झटका ...कभी धीरे से कभी जोर से....क्या करें सहने को मजबूर हैं . अब गर्मी के मौसम ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया है....ऐसी चिप- चिपी गर्मी और ऊपर से पानी की कमी ...प्राकृतिक स्रोत तो कब के सूख गए . सरकारी नलों के  पानी की भी क्या बात करें ...वोह भी सरकार की ही तरह अपनी मर्जी का मालिक है . इस तपती गर्मी में घरों या वृक्षों तले बैठ ...सुस्ताने के साथ-साथ आने वाले समय में पैट्रोल , डीजल  और रसोई गैस के बढने वाले  दामों की आशंका से सभी चिता ग्रस्त हैं. 
            हिमाचल के मौसम में कुछ गर्मी हमारे सियासी भाइयो के कारण भी बढ गई है . हमारे राज नेता दो वर्ष उपरांत  होने वाले हिमाचल प्रदेश के चुनाव के लिए अभी से वार-प्रहार बचाव  के साथ-साथ अपनी-अपनी बिसात बिछाने के लिए किसी किसी बहाने..प्रदेश के दौरों में व्यस्त है . तू डाल-डाल मैं पात-पात वाली कहावत चरितार्थ करते हुए एक दूसरे  के गढ़ भेदने आरोप-प्रत्यारोप में मशगूल इन सियासी दलों को अपने ही लोगों  से  भीतर-घात की  कितनी आशंका है यह  जन सामान्य से छुपा  नहीं है . पिछले विधानसभा चुनाव के समय किसने विरोधी दल के किस प्रत्याशी का साथ दिया..किसने अपने दल के किस प्रत्याशी का भीतर खाते विरोध किया ...यह सब जानते हैं फिर चाहे वोह मंडी जिले का  सदर निर्वाचन क्षेत्र हो या फिर काँगड़ा या  उपरी शिमला  जिले का ..भीतर घात तो सभी दलों मैं है .
            अनुशासन हीनता और भीतर घात की महामारी से सभी दलों को दो- दो हाथ होना पड रहा है. सभी दलों मैं गुटबाजी है . और यह भी किसी से छुपा नहीं है कि सभी दलों की हाई कमान का  निर्णय ही सर्वमान्य निर्णय होगा . पूर्व  कि भांति टिकट चाहने वालो ने अभी से ऊपर का जुगाड़ करना शुरू कर दिया है . जब  खानसामे  और  व्यक्तिगत   सुरक्षा कर्मी या अधिकारी ,   हाई कमान के मेहरबान होने पर सभी वरीयताएं अनदेखी अनसुनी करते हुएपार्टी का चुनाव टिकट प्राप्त कर सकते हैं तो पार्टी से जुड़े अन्य लोग क्यूँ  नहीं सीधे  हाई कमान से ही कनक्शन मिलाने की ही  जुगत करेंगे  ?
               उधर आजकल  सत्ताधारी दल में भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है . आरोप-प्रत्यारोप , अनुशासन भंग का आरोप और बचाव में अनदेखी व सत्ता के लाभ से वंचित रखने  का उलटवार . सत्ता के नशे में चूर शासकों द्वारा उद्दंडता से " दीवार में घेरने की नाकाम कोशिश " और दूसरी ओर " वीर-पुरुषों की कश्तियों में इस प्रकार के तूफानों को गर्क करने "  का दावा करने के साथ ही हिमाचल के मधु कोरा ,  अ.राजा व कनि मोझी को जनता के सामने खड़ा करने के दावे . बेबसी लाचारी , कुंठाओं से दम घुटने की छटपटाहट यहाँ  भी व्याप्त है . दुश्मन करे दोस्त ने वोह काम किया है....यह पंक्तियाँ दोनों ही पक्ष फुसफुसा रहे हैं. ...खुल कर कोई कुछ कहने को तैयार नहीं .
            अपने रुष्ट नेताओं की मान-मुन्न्वल्ल दूरियां कम  करने के लिए किसी अधिकारिक कद्दावर नेता की मध्यस्तता  की  अपेक्षा गली कुचे के छुटभइयों , पार्टी के नौसीखिए- पदाधिकारियो और चाटुकारों की गाहे-बगाहे बयानबाजी , धमकियाँ  चाटुकारिता द्वारा पद ग्रहण कर सत्ता के निकट होने का ओछा प्रदर्शन.....क्या इन्ही सब के बल पर सत्ताधारी दल अनुशासित हो अगला चुनाव जीतने की मंशा  रखता है ? शासन-व्यवस्था की पारदर्षीय ईमानदारी , दल की  विभिन्न धुरियों से समानता का व्यवहार , पुराने कार्य कर्ताओं का यथोचित सम्मान , समाज के सभी वर्गों की  सत्ता में समान हिस्सेदारी  और कड़ा अनुशासन ही आज के राजनैतिक दलों की परम आवश्यकता है .
                 पार्टी सत्ता का लाउडस्पीकर नहीं ... वरन सत्ता ...पार्टी द्वारा पारित की गई नीतियों , चुनाव पूर्व  किये गए वायदों , विकास जन कल्याण के कार्यों को लागू करने का एक तंत्र मात्र ही है . प्रदेशों में प्रदेश के पार्टी अध्यक्षों का स्थान प्रदेश के मुख्यमंत्रियों  से ऊपर दलों के राष्ट्रीय अध्यक्षों का स्थान प्रधान-मंत्रियों से ऊपर होता है यानि सत्ता पर दलों की प्रभुसत्ता होनी चाहिये . परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं हो रहा है..इन्दिरा जी के ज़माने से ही यह प्रथा लगभग समाप्त ही हो  गई थी  और राजनैतिक दल  सत्ता की जेब का खिलौना मात्र बन कर रह गए . इस बीमारी से कोई भी दल अछूता नहीं है . केवल मात्र कहने से ही नहीं बल्कि यह दिखना भी चाहिए और कार्यकर्ताओं को सन्देश भी जाना चाहिए कि पार्टी के अध्यक्ष का स्थान मुख्य मंत्री से ऊपर है , जिस दल का प्रदेशाध्यक्ष मुख्यमंत्री की चौखट  पर मंत्री बनने की प्रतीक्षार्थियों की पंक्ति  में खड़ा नजरें इनायत होने की बाट जोह रहा हो.....उस दल का क्या भविष्य होगा ..इसका कयास लगाने की मशकत करने की आवश्यकता नहीं....सब जग जाहिर है . मतलब कि उसी  पार्टी का भविष्य उज्जवल है जिसका अध्यक्ष सत्ता की कठपुतली नहीं है.
               पूर्व में सत्ताधारी दल में हाई - कमान द्वारा दो धडों में संतुलन रखने की मंशा से एक तीसरे और निष्पक्ष व्यक्ति को प्रदेश के दल की  कमान सौपी जाती रही थी . परन्तु वर्तमान में पार्टी का मुखिया सत्ता-पक्ष की पसंद का होगा ...चाहे वोह   "  मिट्टी का माधव " ही क्यूँ नहीं हो ..... यदि ऐसा पार्टी के हाई- कमान ने यदि मान  लिया है तो ...मैं एक निष्पक्ष राजनैतिक दृष्टा की हैसियत से यह घोषणा करता हूँ कि हाई कमान की  यह सबसे बड़ी गलती है . खुली छूट  ( free hand )  देना ही पार्टी हाई कमान की सबसे बड़ी गलती है .  आज सत्ता-धारी निरंकुश शासक हो गया है . पंजाब का उधाहरण  हमारे समक्ष  है .  यदि अनुशासन हीनता  का आरोप झेल रहे पुराने और कर्मठ नेताओं ने सूचना के अधिकार द्वारा प्राप्त की गई जानकारी की जुबान से लावा उगलना आरम्भ कर दिया तो आने वाले चुनाव के नतीजों में  सत्ता धारी दल कहाँ होगा ...यह आंकलन करना कठिन नहीं है . 
             आने वाला समय हिमाचल के सत्ताधारी दल और विपक्षी दल के लिए बहुत ही कठिनाइयों  भरा होगा यह आभास अभी से हो रहा है . मंत्रियों व सरकारी तंत्र द्वारा विकास का प्रचार , हाई कमान की चाटुकारिता , या क्रिकेट  मैच की नैया से चुनाव की वैतरणी पार हो जायेगी .. लगता नहीं है.  !
और दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल , जिस की केंद्रीय सरकार पर  अरबों रुपयों के भ्रष्टाचार  के आरोप लग रहे हैं , जिसका स्वयं का दामन  विदेशों के बैंको  में अरबो रुपयों के काले धन जमा करने वालों को बचाने के चक्कर मैं दागदार हो रहा है और जिसकी जनविरोधी नीतियों के कारण आज महंगाई सातवें  असमान को छू  रही है  वह दल प्रदेश की सरकार के खिलाफ क्या आवाज उठाएगा....? विभिन्न खेमों मैं बंटा  यह प्रमुख  विपक्षी दल जब भी सर उठाता है...सत्ता पक्ष C D का शोशा छेड़ देता है ठीक वैसे जैसे भा. . पा. जब भी कोई  संगीन मुद्दा  केद्रीय सरकार के विरुद्ध उठाती है ...झट से गुजरात में मोदी के खिलाफ कोई नया आरोप चस्पां हो जाता है .
           प्रायोजित या पक्षीय समाचारों को छोड़ यदि प्रदेश की राजनिति में शौक निष्पक्ष दखल रखने वालों की ओर  रुख किया जाये तो गाहे-बगाहे  ऐसी चर्चाएं  सुनी जा सकती है जिससे यह प्रतीत होता है कि  सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है . शह और मात के इस खेल में अपने भी पराये हो जाते है और कब  धुर विरोधी अपना बन जाये...कोई नहीं जानता .
           प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों को आज भीतर-घात से बचने और  कड़ा अनुशासन लागू करने की आवश्यकता है....वर्ना   " हम तो डूबेंगे....तुम्हें भी ले डूबेंगे सनम " वाली कहावत सिद्ध होने में तनिक भी देर नहीं लगेगी .

विनायक शर्मा
राष्ट्रीय संपादक ( विप्र वार्ता )
पंडोह ( जिला मंडी )

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