( यह लेख अमर ज्वाला साप्ताहिक समाचार पत्र में प्रकाशित हो चुका है )
और अंततः अन्ना हजारे ने 13वें दिन अपना अनशन तोड़ दिया. सारे देश के साथ-साथ सरकार और सत्ता पक्ष ने राहत की साँस ली. अन्ना और उनके साथियों ने इसे आधी विजय बताया है. आधी लड़ाई अभी बाकी है ऐसा अन्ना का भी कहना है. लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की डगर इतनी आसान नहीं है जितनी दिखाई दे रही है. जन-लोकपाल के मुद्दे पर अन्ना हजारे के आंदोलन और संसद में हुई चर्चा के बाद गेंद एक बार पुनः संसदीय समिति के पाले में है. कानून, न्याय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय की यह संसदीय समिति ही लोकपाल बिल के प्रारूप को अंतिम शक्ल देगी, जिसके बाद इसे संसद के पटल पर चर्चा करने और पारित करने के लिए रखा जाएगा. इसमें कोई दो राय नहीं कि संसद ही इस बिल को कानूनी जामा पहनाने का अधिकार रखती है, परन्तु इन सबों के बीच फिलहाल 25 सदस्यों वाली स्थाई समिति की भी अपनी एक अहम् भूमिका है और उसी को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने लोकपाल बिल को इस राह से भेजना तय किया है.
संसद की इस स्थाई समिति में कांग्रेस और बीजेपी समेत कुल 10 राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के साथ ही कुछ निर्दलीय सांसद भी शामिल हैं. कांग्रेस के सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की अध्यक्षता वाली इस कमेटी ने पहले ही साफ कर दिया है कि समिति के पास भेजे गए लोकपाल के सभी प्रारूपों व सुझावों पर विचार कर एक संतुलित बिल ही लोकसभा में भेजा जायेगा. विदित हो कि स्थाई समिति के पास अभी तक सरकारी लोकपाल, जनलोकपाल, सोनिया गाँधी की राष्ट्रीय सलाहकार समिति कि सदस्या अरुणा राय के पांच लोकपाल ड्राफ्ट, लोक सत्ता पार्टी के जयप्रकाश नारायण का ड्राफ्ट, बहुजन लोकपाल का ड्राफ्ट, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जीवीजी कृष्णामूर्ति का ड्राफ्ट आदि मसौदे प्रस्तुत किये जा चुके हैं और इन सभी मसौदों पर गौर करने के बाद ही स्थाई समिति किसी निष्कर्ष पर अपनी मुहर लगाएगी. यानि कि सभी मसौदों और सुझावों के गहन अध्ययन के पश्चात् इन मसौदों के आवश्यक व तर्कसंगत प्रावधानों को मिला कर एक नया और कारगर लोकपाल बिल का प्रारूप सरकार को भेजा जायेगा. यदि स्थाई समिति में विभिन्न दलों के सदस्यों की संख्या और सदस्यों द्वारा संसद में चर्चा के दौरान प्रकट हुए उनके विचारों को मध्ये नजर रखते हुए यह बहुत ही सरलता से कहा जा सकता है कि अन्ना और उनकी टीम द्वारा रचित और देश के करोड़ों जनसामान्य द्वारा समर्थित जन-लोकपाल की डगर आसन नहीं है. यह भी अजब और विचित्र संयोग है कि अभिषेक मनु सिंघवी की अध्यक्षता वाली कानून, न्याय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय की स्थाई समिति जिसने लोक पाल या जन-लोकपाल के विभिन्न प्रारूपों और तमामत सुझावों पर गहन चर्चा कर के एक कठोर और कारगर लोक पाल बिल का प्रारूप कानून बनाने के लिए संसद के पटल पर रखना है, के पिता ने ही कई दशक पहले लोकपाल शब्द की रचना की थी. कानून, न्याय और कार्मिक मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी के पिता, एक बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी, जाने माने विधिवेत्ता और भारतीय ज्ञानपीठ प्रवर समिति के अध्यक्ष डा० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी द्वारा 1960 के दशक में संसद की चर्चा में भाग लेते हुए बार-बार औमबुड्समैन नियुक्त करने की मांग उठाने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सिंघवी से कहा था-- यह किस चिड़ियाघर का प्राणी है ? डा० सिंघवी, हम सब को समझाने के लिए आपको इसका स्वदेशीकरण करना होगा. डा० सिंघवी ने इस पद का हिन्दी रूपांतरण करते हुए इसे लोकपाल नाम दिया और इसके सहयोगी का लोकायुक्त नाम रखा था. डा० एम्.एल.सिंघवी ने 1963 से 1967 तक लोकपाल विधेयक के लिए अभियान चलाया लेकिन चूंकि वह निर्दलीय सांसद थे, इसलिए उनके प्रयास कोई रंग न ला सके. पुत्र होने के नाते कांग्रेसी सांसद अभिषेक मनु सिंघवी के लिए आज यह बहुत ही हर्ष का विषय है कि 1963-1967 तक जिस विधेयक के लिए उनके स्वर्गीय पिता प्रयासरत रहे, आज भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बनाये गए लोकपाल विधेयक का बहुचर्चित प्रारूप उन्हीं की अध्यक्षता वाली संसद की स्थाई समिति के पास विचारणीय है. डा० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी लोकसभा ( 1962 - 67 ) और राज्यसभा ( 1998 - 04 ) के सदस्य रहे. साहित्य और मानवाधिकार के क्षेत्र में भी विशेष उपलब्धियां हासिल करने वाले डा० एलएम् सिंघवी ने ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त के रूप में भी काम किया. अनेकों बार सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता-संघ के अध्यक्ष रहे डा० सिंघवी को विधि और सार्वजनिक विषयों में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1998 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया.
विगत दिनों देश भर में अन्ना के समर्थन में चले आन्दोलनों और विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा संसद और बाहर जाहिर किये गए विचारों से तो अभी तक यही सन्देश मिलता है कि हमारे जन-प्रतिनिधियों को उनके कर्तव्यों और जनता के अधिकारों के विषय में एक बड़ी गलतफहमी हो गयी है. वह अपनी सर्वोच्चता साबित करने के लिए जन-आकाँक्षाओं को विस्मृत करते हुए टकराव की सीमा तक पहुँच गए है. स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उनको अपनी वर्तमान सोच से बाहर निकलना ही होगा. देश तो आशा करता है कि स्थाई समिति के सभी सदस्य समिति के पास उपलब्ध सभी बिलों के प्रारूपों और अन्य सुझावों का, बिना किसी लाग और द्वेष के, गहन अध्ययन करते हुए संसद को एक कठोर, कारगर, पारदर्शी, निष्पक्ष और विधिसम्मत विधेयक पारित करने के लिए अपने सुझाव देंगे. आज देश की जनता जनार्धन आकंठ भ्रष्टाचार से निजात पाना चाहती है. सरकारों में पारदर्शिता को रोकने के लिए सरकार चलाने वाले राजनैतिक दलों ने संविधान प्रदत्त अधिकारों को गलत ढंग से इस्तेमाल करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही समझ रखा है. इतना सब होने पर भी देश भ्रष्टाचार से लड़ रहा है क्यों कि भ्रष्टाचार सबसे संगठित किस्म की मानवाधिकार उल्लंघन करने वाली एक असंविधानिक व्यवस्था है. भ्रष्टाचार वित्तीय पारदर्शिता को समाप्त कर विकास को रोकता है.
संसद में चर्चा के दौरान ही स्पष्ट हो गया था कि लालू यादव जैसे अनेक स्थाई समिति के सदस्य जन-लोकपाल बिल और अन्ना के आन्दोलन के विरुद्ध है. ऐसी स्तिथि में किस प्रकार के बिल का अनुमोदन स्थाई समिति करेगी कहना कठिन है. जहाँ एक ओर समिति के सदस्य लालू प्रसाद यादव ने शनिवार को संसद में कई बार कहा कि वे सभी एनजीओ को लोकपाल मे शामिल किए जाने के हक में हैं, वहीँ दूसरी ओर बीएसपी सांसद विजय बहादुर सिंह ने कहा कि वे जन लोकपाल को ज्यों का त्यों स्वीकार करने को मजबूर कतई नहीं हैं. समिति के कई अन्य सदस्य जिनमें प्रमुख रूप से बीजेपी सांसद हरिन पाठक और रामजेठमलानी जन लोकपाल विधेयक के साथ हैं. वहीँ समिति की सदस्या और कांग्रेस की सांसद मीनाक्षी नटराजन संसद में पहले ही कह चुकी हैं कि वे सभी प्रारूपों पर गौर करेंगी. उधर राजस्थान से निर्दलीय सांसद किरोड़ी लाल मीणा भी जनलोकपाल के हक में नहीं हैं. समिति के सदस्य अमर सिंह का जन लोकपाल पर विरोध जग जाहिर है. वहीं दूसरी ओर यह भी समाचार है कि मनीष तिवारी ने किसी भी प्रकार के विवाद से बचने के लिए स्थाई समिति से अपना त्याग पत्र दे दिया है. इस प्रकार स्थाई समिति में अभी तक तो एक बिखराव सा ही दिखाई दे रहा है.
दलगत राजनीति से हटकर यदि हम देश भर में अभी तक हुए तमाम निष्पक्ष सर्वेक्षणों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि 75 प्रतिशत से अधिक जनता की राय सिविल सोसाइटी के जन-लोकपाल बिल को ही विधेयक के रूप में पारित करने के पक्ष में है. लेकिन यदि संसद की स्थाई समिति जन-लोकपाल के प्रारूप से भी बेहतर बिल लेकर आती है तो उसका तो बहुत ही स्वागत होगा. सभी प्रकार की आशंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए देश भर में यह सन्देश जायेगा कि स्थाई समिति और सरकार, दोनों ही भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए अपने कर्तव्यों को बखूबी समझते हैं और आम जनता की तरह उतने ही संवेदनशील भी है. ऐसी स्तिथि में जन-साधारण स्थाई समिति और सरकार का तहेदिल से कोटि-कोटि धन्यवाद भी करेगी.
विनायक शर्मा
राष्ट्रीय संपादक विप्र वार्ता
पंडोह, मंडी 

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